पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, June 25, 2009

पाकिस्तान में सरबजीत की याचिका खारिज, भारत का मानवीय रूख अपनाने का आग्रह।

अदालत में वकील के उपस्थित न हो पाने के कारण पाकिस्तानी सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को भारतीय कैदी सरबजीत सिंह की फांसी की सजा पर विचार करने संबंधी दया याचिका खारिज कर दी। लेकिन भारत को उम्मीद है कि पाकिस्तान इस मामले में सहानुभूतिपूर्ण व मानवीय दृष्टिकोण अपनाएगा। सरबजीत पर वर्ष 1990 में लाहौर में चार बम धमाकों को अंजाम देने का आरोप है। इन धमाकों में 14 लोगों की मौत हुई थी। इस घटना के बाद सरबजीत को 1991 में फांसी की सजा सुनाई गई थी। तभी से वह पाकिस्तान के कोट लखपत जेल में बंद है। अदालत का यह फैसला न्यायमूर्ति रजा फैयाज के नेतृत्व वाली सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने सुनाया। फैसला आने के साथ ही भारत में पंजाब स्थित भिकिविंड गांव में सरबजीत के परिवार में मायूसी छा गई। 
इधर, नई दिल्ली में विदेश मंत्री एस.एम.कृष्णा ने स्वीकार किया कि सरबजीत का मामला भारत में लोगों की भावनाओं से जुड़ गया है। विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने सरबजीत सिंह को मृत्युदंड से मुक्त करने के लिए पाकिस्तान से लगातार अपील की है और आगे भी इसे जारी रखेगा। उन्होंने कहा, "हमने पाकिस्तान सरकार से लगातार कहा है कि सरबजीत के मामले में वह सहानुभूतिपूर्ण व मानवीय दृष्टिकोण अपनाए। हमें उम्मीद है कि पाकिस्तान ऐसा कर पाने में सक्षम होगा।"
उधर, सरबजीत के वकील ने कहा कि वह अदालत में इसलिए उपस्थित नहीं हो सका, क्योंकि उसे पंजाब प्रांत में एक कानून अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जा चुका है। उसने अपने एक साथी वकील से अदालत में उपस्थित होने के लिए कहा था लेकिन वह उपस्थित नहीं हो सका। इधर भिकिविंड में सरबजीत की पत्नी ने आरोप लगाया है कि पाकिस्तानी वकील ने लाखों रुपये की मांग की थी। लेकिन सरबजीत का परिवार इतनी कीमत अदा करने में समर्थ नहीं हो पाया।

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