पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, July 2, 2009

मद्रास हाईकोर्ट ने सलवार-कमीज को भड़काऊ पोशाक नहीं माना।


मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि सलवार-कमीज को भड़काऊ पोशाक नहीं माना जा सकता। अदालत ने इस टिप्पणी के साथ एक निजी होम्योपैथिक कालेज को निर्देश दिया कि वह महिला इंटर्न को डिग्री हासिल करने से पहले एक साल तक सिर्फ साड़ी पहनने के लिए मजबूर न करे। 

हाईकोर्ट ने कालेज की एक महिला इंटर्न वी. कमलम की याचिका पर यह निर्देश दिया। इंटर्नशिप के दौरान साड़ी पहन कर आने से इनकार करने पर कमलम को बीते नवंबर से कक्षा में उपस्थित होने की इजाजत नहीं दी गई। याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस वी. वेंकटरमन ने मंगलवार को कहा कि नियम-कायदे के अभाव में कालेज किसी खास ड्रेस कोड पर जोर नहीं दे सकता। 

जज ने अपने आदेश में कहा, 'मेरे सामने ऐसे किसी नियम-कायदे का हवाला नहीं दिया गया, जो यह दर्शाता हो कि महिला इंटर्न को इंटर्नशिप के दौरान सिर्फ साड़ी पहननी चाहिए। कालेज की विवरण-पुस्तिका [प्रास्पेक्टस] में भी इस तरह के किसी ड्रेस कोड का जिक्र नहीं है।' उन्होंने कहा, 'इस तरह के नियम-कायदे के अभाव में कालेज इस बात पर जोर नहीं दे सकता कि याचिकाकर्ता सिर्फ साड़ी पहने और सलवार-कमीज या चूड़ीदार कुर्ता-पैजामा न पहने। दुपंट्टे के साथ पहने गए सलवार-कमीज या चूड़ीदार कुर्ता-पैजामा को शालीन पोशाक माना जाता है। वेंकटेश्वर होम्योपैथी मेडिकल कालेज का सिर्फ साड़ी पहनने पर जोर डालना अतार्किक और निराधार होने के सिवाय कुछ नहीं है।'

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