पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, July 7, 2009

सरकारी कॉलेज कर रहे हैं हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना।


उदयपुर संभाग के समस्त राजकीय महाविद्यालय हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए संविदा व्याख्याताओं को नियुक्ति नहीं दे रहे है जबकि उच्च न्यायालय ने पूर्व में राज्य सरकार को कालेजों में लगाए गए संविदा व्याख्याताओं को पुन: नियुक्त करने के आदेश दे दिए है।
वर्ष २००८-०९ में राज्य के सभी सरकारी कालेजों में व्याख्याताओं की कमी को देखते हुए संविदा के आधार पर व्याख्याता नियुक्त किये गये थे। जिनकी सेवाएं इसी वर्ष २८ फरवरी को समाप्त हो चुकी थी । जिस पर व्याख्याताओं ने एक संयुक्त संविदा व्याख्याता संघर्ष समिति बनाकर उच्च न्यायालय में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल की। उच्च न्यायालय ने सभी याचिकाओं पर संयुक्त निर्णय देते हुए राज्य सरकार को संविदा व्याख्याताओं की सेवा जारी रखने के आदेश दिए ।
कालेजों में ८ जुलाई से नया सत्र शुरू होने को है परंतु अभी तक महाविद्यालयों ने संविदा व्याख्याताओं को उपस्थिति देने के लिये कोई भी आदेश नहीं दिए है। वहीं व्याख्याता ज्वाईनिंग के आदेशों की प्राप्ति के लिए महाविद्यालयों के चक्कर काट रहे है। स्थिति यह हो गई है कि महाविद्यालयों के साथ-साथ विश्वविद्यालय प्रशासन भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा है।
राजकीय महाविद्यालयों में व्याख्याताओं के सैंकड़ों पद खाली पड़े है। इन पदों की पूर्ति के लिए राजस्थान लोक सेवा आयोग की ओर से अभी तक कोई विज्ञप्ति नहीं निकाली है। कालेज संविदा व्याख्याता संघर्ष समिति के गोविन्द सिंह राठौड़ ने बताया कि कालेजों में व्याख्याताओं के पद खाली पड़े हैं, साथ ही नया सत्र भी शुरू होने वाला है। ऐसी स्थिति में छात्र-छात्राओं को हानि उठानी पड़ेगी। समिति के सचिन दीक्षित ने बताया कि महाविद्यालयों द्वारा हाईकोर्ट के आदेशों की अवहेलना किए जाने से व्याख्याताओं के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।

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