पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, July 17, 2009

शादी के लिए 'मंगल सूत्र' अनिवार्य नहीं।


मद्रास उच्च न्यायालय की एक पीठ ने एक महिला की विवाह की मान्यता के बारे में निचली अदालत के फैसले को यहाँ बरकरार रखते हुए कहा कि हिंदुओं के बीच शादी को साबित करने के लिए यह अनिवार्य नहीं कि दुल्हा अपनी दुल्हन के गले में 'मंगल सूत्र' बाँधे। इस फैसले के साथ अपनी शादी को साबित करने के लिए एक महिला को 21 साल तक चली कानूनी जंग में कामयाबी मिल गई।
न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश ने एक निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखते हुए और इसे चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए कहा कि हिंदुओं के बीच अपनी शादी को साबित करने के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि दुल्हा अपनी दुल्हन के गले में 'मंगल सूत्र' बाँधे।
हिंदू विवाह कानून की धारा-7 के मुताबिक किसी भी मान्यता प्राप्त विधि के तहत शादी को साबित करना पर्याप्त है। महिला के मुताबिक कलाधर के साथ उसकी शादी विधिवत तरीके से 13 दिसंबर 1987 को एक स्थानीय मंदिर में हुई थी और शादी के बाद महिला गर्भवती हो गई। दोनों ने पुजारी की मौजूदगी में एक-दूजे को वरमाला पहनाई थी।
महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति कलाधर ने उसे दहेज के लिए सताया और शादी के पाँच महीने बाद उसके घर से बेदखल कर दिया। उसने आरोप लगाया कि छह जुलाई 1998 को प्रसव के दौरान उसके बच्चे की मौत हो गई।
इस घटना के बाद इस महिला ने एक मामला दर्ज किया, जिसमें उसने खुद को कलाधर की कानून सम्मत पत्नी का दर्जा देने की माँग की। निचली अदालत ने 1998 में उसकी शादी की मान्यता को बरकरार रखा, लेकिन कलाधर ने 1999 में इस फैसले को चुनौती देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। अदालत ने इस याचिका को 2004 में अपनी मदुरै पीठ के पास भेज दिया।
कलाधर ने कहा कि यह महिला यह साबित करने में नाकाम हुई है कि उसने उसके गले में 'मंगल सूत्र' बाँधा था। शुरूआत में उसने इस बात से भी इन्कार कर दिया कि दोनों की शादी हुई है। अदालत ने कलाधर की याचिका को बुधवार को खारिज कर दिया।  

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