पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, August 6, 2009

'शिक्षा का अधिकार' विधेयक को चुनौती।


छह से 14 वर्ष की उम्र के बच्चों को मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित कराने के मकसद से लोकसभा में मंगलवार को पारित शिक्षा का अधिकार विधेयक के प्रावधानों से नाखुश एक शीर्ष शिक्षाविद् ने बुधवार को इस विधेयक को उच्च स्तर पर दोषपूर्ण बताया है और कहा कि इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जाएगी।

प्रख्यात शिक्षाविद् अनिल सदगोपाल ने मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के उस दावे को खारिज करते हुए, जिसमें उन्होंने विधेयक को ऐतिहासिक बताया था, कहा, "देश के लिए वह एक सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन होगा, जिस दिन यह विधेयक कानून में परिवर्तित हो जाएगा।"

सदगोपाल के अनुसार कई सारे शिक्षाविदों और नागरिक अधिकार समूहों ने बड़े पैमाने पर दोषपूर्ण और बाल विरोधी इस विधेयक के खिलाफ शुक्रवार को जंतर मंतर पर एक विरोध प्रदर्शन आयोजित करने की योजना बनाई है।

वर्ष 2005 में शिक्षा का अधिकार विधेयक पर काम करने के लिए कपिल सिब्बल के नेतृत्व वाले केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (सीएबीई) के सदस्य रहे सदगोपाल ने कहा है, "यह विधेयक निजी स्कूलों की मदद करेगा और इसमें सभी को समान शिक्षा उपलब्ध कराने का कोई रास्ता उपलब्ध नहीं है।"

सदगोपाल ने भोपाल से आईएएनएस को फोन पर बताया, "क्या इस विधेयक के बाद निजी स्कूल छह से 14 वर्ष की उम्र तक के बच्चों से फीस लेना बंद कर देंगे? इस सवाल पर विधेयक मौन है।"

उन्होंने कहा, "यह विधेयक पिछड़े और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गो के लिए 25 प्रतिशत आरक्षण मुहैया कराता है। लेकिन विधेयक में इस बारे में कुछ नहीं लिखा है कि क्या इस तरह के बच्चों को फीस अदा करने वाले बच्चों के साथ ही कक्षा में बैठाया जाएगा?"

सदगोपाल ने कहा, "अभी इस विधेयक को कानून बनना बाकी है और इस पर राष्ट्रपति की मुहर लगनी है। हम इस विधेयक के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करने की योजना बना रहे हैं और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मांग करेंगे कि वे इसे बगैर हस्ताक्षर के वापस कर दें।"

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