पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, October 30, 2009

गवाही के लिए अदालत में हाजिर न होने वाले एसपी तीन घंटे न्यायिक हिरासत में।


गिरफ्तारी वारन्ट एवं वेतन रोकने का आदेश होने के बावजूद गवाही के लिए अदालत में हाजिर न होने वाले बनारस के पुलिस अधीक्षक नगर विजय भूषण को गुरुवार को फास्ट ट्रैक कोर्ट के अपर सत्र न्यायाधीश राहुल कुमार ने तीन घंटे तक न्यायिक हिरासत में रखा। बाद में क्षमा याचना करने पर उन्हे अभिरक्षा से छोड़ा गया।

एसपी विजय भूषण जब एसटीएफ लखनऊ में थे तो उन्होंने 10 अगस्त 2005 की रात्रि में वेव सिनेमा के पास मुठभेड में मुन्ना उर्फ फिरोज तथा डा. अजय सक्सेना उर्फ अजय त्रिपाठी को गिरफ्तार किया था। इस मामले में वादी स्वयं विजय भूषण है। अदालत के समक्ष उन्होंने 27 जनवरी 2007 को गवाही दी थी परन्तु बचाव पक्ष ने जिरह नहीं की। 30 मई 2009 को पुन: बचाव पक्ष की अर्जी को मंजूर कर जिरह के लिए विजय भूषण को अदालत ने तलब किया।

30 मई के बाद से करीब एक दर्जन बार अदालत ने सख्त से सख्त आदेश पारित किए। नोटिस, गिरफ्तारी वारन्ट व वेतन रोकने के आदेश हुए जिनका पालन करने के लिए अदालत ने बनारस के पुलिस उपमहानिरीक्षक को भी कई पत्र लिखे। लेकिन हर बार पुलिस महानिरीक्षक ने अदालत को सूचित किया कि कानून व्यवस्था कायम रखने की जरूरतों के चलते अगली तिथि पर विजय भूषण को गवाही के लिए जरूर भेजा जाएगा।

अदालत ने अपने अन्तिम पत्र में डीआईजी बनारस को लिखा कि विजय भूषण के अदालत में न आने से मुकदमे की कार्यवाही नहीं हो पा रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि विजय भूषण वाराणसी की पूरी कानून व्यवस्था संभाले हुए हैं। यह स्थिति न्यायिक प्रक्रिया में बाधा पहुंचाने वाली है, जो उचित नहीं है। अदालत ने काफी समय विजय भूषण को न्यायिक अभिरक्षा में रखने के बाद उनके द्वारा दिए गए प्रार्थना पत्र पर वारन्ट निरस्त करने का आदेश पारित किया। इस आदेश के बाद मुकदमें की गवाही प्रक्रिया प्रारम्भ हुई।

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