पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, November 20, 2009

लंबित मुकदमों में 65 फीसदी से ज्यादा मामले सरकार के खिलाफ।


अगर आप यह सोच रहे हैं कि राजस्थान हाई कोर्ट में सबसे ज्यादा मामले अपराधियों पर चल रहे हैं, तो खुद को अपडेट कर लें। हाई कोर्ट में दाखिल एक लाख 60 हजार मामलों में से लगभग साठ फीसदी यानी 97 हजार मामले सरकार के खिलाफ हैं। कई मामलों में तो वादी-प्रतिवादी राज्य सरकार ही है। यह हाल सिर्फ राजस्थान में ही नहीं, बल्कि कर्नाटक हाई कोर्ट में तो 65 फीसदी से ज्यादा मामले सरकार के खिलाफ हैं।

हाई कोर्ट में राज्य सरकार से जुड़े सबसे ज्यादा मामले कर विभाग, गृह, वित्त, उद्योग, खान-पेट्रोलियम, वन, पीएचईडी, शिक्षा, पंचायतीराज, परिवहन और राजस्व विभाग सहित 19 विभागों के हैं। राजस्थान हाई कोर्ट में सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले टैक्स से जुड़े हैं। हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील और रिटायर्ड जज अजय कुमार जैन की मानें तो हाई कोर्ट में अधिकांश सरकारी मामले अनुपयुक्त और अपारदर्शी कानून के कारण दायर होते हैं।

सरकार के खिलाफ बढ़ते मामलों को देखते हुए राज्य के महाधिवक्ता ने सबसे ज्यादा केस वाले 19 विभागों की पहचान की है। विभागों के आपसी मामलों में अधिकांश मामले पेंशन नहीं मिलने, गलत ट्रांसफर करने, नियुक्ति में गड़बड़ी वाले होते हैं। राजस्थान हाई कोर्ट में वर्ष 1991 से 2002 के बीच लंबित मामलों में लगभग 30% की वृद्धि हुई है।
वर्ष 1994 मे विधि मंत्रियों और विधि सचिवों की बैठक में इस बात का फैसला किया गया था कि सरकार व सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के बीच के विवाद और एक सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम का दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के साथ होने वाले विवाद को न्यायालय या अधिकरणों में नहीं निपटाया जाएगा। इनका निपटारा दोनों पक्षों के बीच समझौता कराकर किया जाएगा। हकीकत यह है कि सरकार ऐसा नहीं कर पाई।

देश की विभिन्न अदालतों में राज्य सरकार की ओर से दायर याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी नाराज है। पिछले सप्ताह ही राजस्थान सरकार की एक याचिका पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को लताड़ लगाई है। कोर्ट का कहना है कि राज्य सरकारें बेमतलब याचिका दायर करने से बाज आएं। ये बात सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरवी रवींद्रन और जस्टिस जीएस सिंघवी की बैंच ने गुरुवार को नगर विकास न्यास, बीकानेर की याचिका रद्द करते हुए कही।

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