पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, November 9, 2009

शादी के झांसे में नहीं आएं महिलाएं-दिल्ली हाईकोर्ट


दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं को चेताया है कि वे महज शादी के वादे पर किसी से शारीरिक संबंध न बनाएं। कोर्ट ने महिलाओं से कहा कि शुद्धता, शुचिता और गुण को बनाए रखना पूरी तरह उन पर ही निर्भर करता है।

न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर की पीठ ने कहा, '..अंतत: ये महिलाएं ही हैं जो अपने शरीर को सुरक्षित रखने के लिए जिम्मेदार हैं। शादी का वादा हकीकत बन भी सकता है और नहीं भी बन सकता है। रिश्ते में शामिल किसी महिला के सम्मान, गरिमा और शील के रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी अंतत: उसी की बनती है।'

न्यायालय की यह सलाह एक व्यक्ति द्वारा दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान आई है जिस पर अपने पड़ोसी से शादी का झांसा देकर दुष्कर्म का आरोप है। अभियुक्त को जमानत दे देने वाली पीठ ने कहा कि एक महिला को किसी मर्द के आगे महज क्षणिक सुख के लिए समर्पण नहीं करना चाहिए। किसी महिला के सम्मान, गरिमा और शील के रक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी अंतत: उसी की बनती है।

हालांकि, न्यायालय ने सरकारी वकील की उस दलील को खारिज कर दिया कि अभियुक्त को इसलिए जमानत नहीं दी जा सकती क्योंकि उसे शारीरिक संबंध बनाए जाने में पीड़िता की सहमति प्राप्त थी।

जमानत देते वक्त पीठ ने कथित तौर पर लिखे गए उन प्रेम पत्रों को भी ध्यान में रखा, जिसमें पीड़िता ने अभियुक्त से यह इच्छा जाहिर की थी कि वह उसके बच्चे की मां बनना चाहती है।

न्यायालय ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि पीड़िता ने अभियुक्त को शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दी थी क्योंकि उसने वादा किया था कि वह पीड़िता से शादी करेगा। लेकिन न्यायालय ने यह भी कहा कि महज शादी का वादा शारीरिक संबंध बनाए जाने का कारण नहीं होना चाहिए था।
पीठ ने इस बात पर भी गौर किया, जिसमें कहा गया था कि पीड़िता अपने परिजनों की चाय में नींद की गोली मिला देती थी, जिससे वह अभियुक्त के साथ अपने घर में ही शारीरिक संबंध बना सके।  हालांकि, सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मर्दों को भी नसीहत दी कि निश्चित तौर पर यह मर्दों का भी नैतिक कर्तव्य है कि वे झूठे वादे करके किसी महिला का शोषण नहीं करें।

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