पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, November 12, 2009

कानून बनाने के हक पर विचार करेगी संविधान पीठ : सुप्रीम कोर्ट


उच्चतम न्यायालय ने आज पांच सदस्यीय संविधान पीठ को इस बात पर विचार करने के लिए कहा कि क्या अदालतें कानून बना सकती हैं तथा ध्यान दिलाया कि ऊची कीमतों और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर आदेश देने के लिए अदालतों के पास विशेषज्ञता नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने केरल विश्वविद्यालय से संबद्ध विभिन्न कालेजों के प्रधानाध्यापकों की याचिका के बाद छात्र संघ और उसके चुनाव संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि कल, हम संसद को भंग नहीं कर सकते और यह नहीं कह सकते हैं कि हम संसद हैं और कानून बनाना शुरू कर देंगे। न्यायमूर्ति मार्कन्डेय काटजू और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने यह मुद्दा पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेज दिया कि क्या अदालत कानून बना एवं लागू कर सकती हैं जो विधायिका और कार्यपालिका के विशिष्ट अधिकार क्षेत्र में आता है।
पीठ ने कहा कि आज ऊंची कीमतें और बड़े स्तर पर बेरोजगारी है। यह आवश्यक सामाजिक जरूरतें हैं। लेकिन क्या हम इन सरकार को आदेश दे सकते है लेकिन हमारे पास विशेषज्ञता नहीं है हालांकि हम भी उंची कीमतों के कारण प्रभावित हैं। न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायपालिका के लिए विधायिका और कार्यपालिका के कामों को अपने हाथों में लेना ‘अनुचित' और ‘खतरनाक' होगा। उन्होंने कहा कि इन तीनों की अपनी विशिष्ट भूमिका है। पीठ ने आगाह किया कि न्यायाधीशों को नियंत्रण बरतना होगा। अन्यथा इससे भारी प्रतिक्रिया होगी। न्यायाधीशों ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व में दिये गये उस आदेश पर आपत्ति जतायी कि जिसके तहत देश के कालेजों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव कराने के लिए दिशानिर्देश तय किये गये थे।
उन्होंने कहा कि हम (अदालतें) विधायिका का कामकाज अपने हाथ में ले रहे हैं.. हां, कुछ अस्पष्ट क्षेत्र हैं.. हमारा मत हैं कि यह लोकतंत्र के लिए अनुचित और खतरनाक है। पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ द्वारा विचार करना जरूरी है क्योंकि इससे गंभीर संविधानिक महत्व के सवाल जुड़े हैं।
संविधान पीठ जिन मुद्दों पर विचार करेगी, वे हैं ..क्या उच्चतम न्यायालय का 22 सितंबर को लिंगदोह समिति की रिपोर्ट का कार्यान्वयन करने के लिए दिया गया अंतरिम आदेश वैध था।
.. दूसरा, क्या यह न्यायिक विधेयक के दायरे में आता है।
.. तीसरा, क्या न्यायपालिका कानून बना सकती है और अगर हां, तो इसकी सीमा कहां तक है।
.. चौथा, क्या न्यायपालिका ऐसे न्यायिक आदेश जारी करने के लिए सामाजिक समस्याओं का हवाला दे सकती है। शीर्ष न्यायालय की पीठ ने सालिसीटर जनरल और इस मामले में न्याय मित्र गोपाल सुब्रह्मण्यम की यह दलील खारिज कर दी कि ऐसे आदेश सामाजिक जरूरतें पूरी करने के लिए दिए जाते हैं। उच्चतम न्यायालय ने लिंगदोह समिति की सिफारिशों के आधार पर 22 सितंबर 2006 को महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्र संघ के चुनाव कराने के संबंध में दिशानिर्देश जारी किए थे।
इन दिशानिर्देशों में, छात्रसंघ चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशियों द्वारा अंधाधुंध व्यय किए जाने पर रोक, आयु सीमा और आपराधिक तत्वों को चुनाव लड़ने से रोकना शामिल था।
पीठ ने कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ को विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसमें गंभीर संवैधानिक सवाल शामिल है।

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