पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, November 16, 2009

वकील बार काउंसिल के चुनावी कायदों से ही अनजान


कानून के जानकार होने के बावजूद कई वकील अपनी नियामक संस्था बार काउंसिल के चुनावी कायदों से ही अनजान हैं। राजस्थान राज्य की ग्यारहवीं बार काउंसिल के लिए चल रही मतगणना में सामने आ रही वकीलों की खामियां देखकर तो यही लगता है।

प्रदेश के छह सौ से ज्यादा अधिवक्ताओं ने तो 'पहली पसंद' का प्रत्याशी चयन करने में भी गडबडी कर दी है। कइयों ने एक से ज्यादा प्रत्याशियों के नाम के सामने पहली पसंद का अंक (1) लिख दिया, तो कुछ ने किसी को भी पहली प्राथमिकता नहीं दी। कुछ वकीलों ने मतपत्र पर दस्तखत, नाम या कोई टिप्पणी लिख दी। नतीजतन, पूरे राज्य में वकीलों के 679 मत तो फिजूल ही चले गए। यह संख्या हालांकि कुल मतों के अनुपात में खासी कम है, लेकिन इतने वोट हासिल करने वाला प्रत्याशी 110 उम्मीदवारों में 'टॉप-फाइव' की श्रेणी में आ सकता था।

नहीं रखी गोपनीयता
इतना ही नहीं, टोंक जिले के टोडारायसिंह में अधिकांश वकीलों के मत की गोपनीयता ही खत्म हो गई। दरअसल, बार काउंसिल के चुनाव नियमों (सेक्शन 23-24) के मुताबिक मतपत्र पर नाम, हस्ताक्षर या पहचान का कोई चिह्न अंकित नहीं होना चाहिए।

बावजूद इसके यहां 42 में से 35 वकीलों के मतपत्रों पर उनका अधिवक्ता पंजीयन क्रमांक (एनरोलमेंट नम्बर) लिख दिया गया। मतगणना के दौरान जयपुर के उम्मीदवार रामावतार खण्डेलवाल ने लिखित आपत्ति व्यक्त कर इन्हें खारिज करने की मांग भी रखी, लेकिन टोडारायसिंह के पीठासीन अधिकारी से स्पष्टीकरण लेकर इन मतों को वैध मानने की अनुमति दे दी गई है।

काउंसिल चुनाव में एक मतदाता ने पहली प्राथमिकता अंकित करने के बाद मतपत्र पर लिख दिया- 'अन्य सभी अयोग्य हैं।' वहीं एक अधिवक्ता ने किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देने की टिप्पणी लिखी। मतपत्रों पर ऎसी ही कई टिप्पणियां लिखी पाई गई।

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