पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, December 12, 2009

मंजूनाथ के हत्यारे को अब फांसी नहीं उम्रकैद की सजा


इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चार साल पहले मारे गए इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के अधिकारी मंजूनाथ की हत्या के लिए दोषी पाए गए मोनू मित्तल की फांसी की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया है और दो अन्य लोगों को रिहा करने के आदेश दिए हैं. कर्नाटक निवासी मंजूनाथ शणमुघम इंडियन आयल कॉर्पोरेशन के सेल्स मैनेजर थे. अब से चार साल पहले उत्तर प्रदेश के लखीमपुरखीरी में उनकी हत्या हो गई थी.

मंजूनाथ आईआईएम लखनऊ के छात्र रहे थे. आईआईएम के छात्रों और मीडिया ने मंजूनाथ की हत्या के मामले को तब काफी उछाला था और कहा गया था कि उनकी ईमानदारी के कारण उनकी जान गई थी. मंजुनाथ ने लखीमपुर खीरी में एक पेट्रोल पम्प पर मिलावटी तेल बेचे जाने का पर्दाफाश किया था.इस पेट्रोल पम्प के मालिक का नाम पवन कुमार मित्तल उर्फ़ मोनू मित्तल था. मंजूनाथ की हत्या 19 नवम्बर 2005 को गोली मारकर तब कर दी गयी थी जब वो मिलावटी पेट्रोल का नमूना लेने पेट्रोल पंप पहुंचे थे. सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं कि जिन्हें उम्रक़ैद की सज़ा मिली हो और अगर उसकी तामील न हुई हो और काफी वक़्त गुज़र गया हो तो उसे उम्र क़ैद की सज़ा में बदल दिया जाता है क्यूंकि तबतक दोषी व्यक्ति काफी मानसिक प्रताड़ना भुगत चुका होता है.

मंजूनाथ की हत्या के अभियुक्तों ने मंजुनाथ के शव को कार के पीछे की सीट पर रखा और अपने दो सहयोगियों से कहा कि वो इसे सीतापुर की नहर में ठिकाने लगा दें लेकिन इससे पहले कि वो ऐसा कर पाएं, उनके दुर्भाग्य से उधर से पुलिस की गाड़ी गुज़री जो उस वक़्त तड़के गश्त लगा रही थी. उसे देखकर अभियुक्तों के हाव भाव बदल गए और वो भागने की फ़िराक में लग गए जिसके बाद पुलिस की गाड़ी ने उनका पीछाकर उन्हें शव के साथ रंगे हाथों पकड़ लिया.

इस मामले में अभियुक्तों के ख़िलाफ़ 15 फ़रवरी, 2009 को चार्जशीट दायर किया गया  अदालत ने तब अपने फैसले में मोनू मित्तल को फांसी की सज़ा सुनाई थी जबकि उनके दूसरे सहयोगियों को उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी.

नियमानुसार फांसी की सज़ा की पुष्टि हाईकोर्ट द्वारा होती है. हाईकोर्ट ने अब मुख्य अभियुक्त मोनू मित्तल की फांसी की सज़ा को उम्रक़ैद में बदल दिया है. पीड़ित परिवार और मंजूनाथ ट्रस्ट के वकील आईबी सिंह का कहना है कि अदालत के फ़ैसले में यह बदलाव सुप्रीम कोर्ट के ऐसे दूसरे मामलों में फैसलों के अनुकूल है.

आई बी सिंह ने कहा कि " सुप्रीम कोर्ट के सामने ऐसे उदाहरण पहले से मौजूद हैं कि जिन्हें उम्र क़ैद की सज़ा मिली हो और अगर उसकी तामील न हुई हो और काफी वक़्त गुज़र गया हो तो उसे उम्रक़ैद की सज़ा में बदल दिया जाता है क्यूंकि तब तक दोषी व्यक्ति काफी मानसिक प्रताड़ना भुगत चुका होता है."

अदालत ने इस मामले में दो और अभियुक्तों को बरी कर दिया है. मंजुनाथ के परिवारवालों का कहना है कि वो इस फ़ैसले से संतुष्ट हैं.

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