पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, December 29, 2009

चीफ जस्टिस बिना फन सांप समान : हाईकोर्ट जज


न्यायमूर्ति दिनाकरन पर उपजे विवाद के बाद भारत के प्रधान न्यायाधीश के नैतिक प्राधिकार की क्षमता पर सवाल उठाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के एक न्यायाधीश ने कहा कि शीर्षस्थ न्यायाधीश बिना फन के सांप जैसे हैं, जो सिर्फ फुफकार सकते हैं, लेकिन काट नहीं सकते।
कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश डी वी शैलेंद्र कुमार ने शीर्ष न्यायपालिका को एक बार फिर आड़े हाथों लेते हुए दागी न्यायाधीशों के खिलाफ कदम उठाने के उसके ‘नैतिक प्राधिकार' की क्षमता पर सवाल उठाये हैं।
उन्होंने मौजूदा प्रणाली के तहत ऊपरी अदालतों के न्यायाधीशों पर चलायी जाने वाली महाभियोग कार्यवाही की प्रभाव क्षमता पर भी संदेह प्रकट किया है। न्यायमूर्ति कुमार ने कर्नाटक स्टेट एडवोकेट्स कॉन्फ्रेंस की स्मारिका में ‘न्यायिक जवाबदेही' पर लिखे अपने लेख में कहा है कि न्यायिक जवाबदेही एक मुहावरा है जो सुनने में असंगत लगता है और इसके विरोधाभासी अर्थ हो सकते हैं। न्यायमूर्ति कुमार का यह लेख उनके ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।
जमीन कब्जा करने के आरोपों का सामना कर रहे कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी डी दिनाकरन की ओर संकते करते हुए उन्होंने लिखा है कि न्यायिक अधिकारियों और यहां तक कि ऊपरी अदालतों के जजों के कामकाज के अनुचित और अनियमित तौर तरीकों को देखते हुए इस मुहावरे की अहमियत बढ़ गयी है। न्यायमूर्ति कुमार ने न्यायमूर्ति दिनाकरन के पीठ के कामकाज से दूर होने के बावजूद प्रशासनिक कार्यों में भाग लेने की आलोचना की है। दिनाकरन मुद्दे पर चल रहे घटनाक्रम के संदर्भ में भारत के प्रधान न्यायाधीश के नैतिक प्राधिकार पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि यह धारणा गलत है कि न्यायपालिका के प्रमुख के तौर पर भारत के प्रधान न्यायाधीश इस नैतिक अधिकार का अनियमित आचरण करने वाले न्यायाधीश को दुरुस्त करने में प्रयोग कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति कुमार ने लिखा है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश की महज नैतिक जिम्मेदारी का कोई महत्व नहीं है जब तक कि उसका कोई बाध्यकारी प्रावधान न हो जिसका संविधान में कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने लिखा है कि जहां तक ऐसे मामलों का सवाल है भारत के प्रधान न्यायाधीश की स्थिति बिना दांत वाले सांप के समान है। वह फुफकार तो सकते हैं लेकिन काट नहीं सकते। यह जल्द ही सबके सामने जाहिर हो जाएगा और तब इस सांप से कोई नहीं डरेगा। चाहे वह कितना ही डरावना क्यों न दिखे और वह कितनी ही जोर से क्यों न फुफकारे। दुर्भाग्य से यही सच है।

0 टिप्पणियाँ: