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Friday, December 18, 2009

दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग याचिका मंजूर, इस्तीफा नहीं देंगे दिनाकरन,


राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी ने गुरुवार को कर्नाटक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पी.डी. दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए 75 सांसदों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका स्वीकार कर ली। दिनाकरन पर भूमि घोटाले का आरोप है। हालांकि यह महाभियोग प्रस्ताव पारित हो पाएगा, इसमें संदेह है।
उपराष्ट्रपति कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि सभापति ने दिनाकरन को हटाने संबंधी 75 सांसदों के हस्ताक्षर वाली याचिका स्वीकार कर ली है। मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में यह याचिका सोमवार को अंसारी को सौंपी गई थी।
 दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का भविष्य हालांकि अनिश्चित है क्योंकि इस याचिका पर कांग्रेस के किसी भी सदस्य ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं। 
 किसी भी कार्यरत न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का यह तीसरा मामला है। पिछले साल प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन की सिफारिश पर राज्यसभा ने वित्तीय अनियमितता के मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सौमित्र सेन के खिलाफ तीन सदस्यीय समिति गठित की थी।
इससे पहले वर्ष 1993 में न्यायाधीश वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग लाया गया था लेकिन यह सफल नहीं रहा था। उस मामले में तीन सदस्यीय समिति ने जांच की थी और न्यायाधीश को भ्रष्टाचार का दोषी पाया था लेकिन जब प्रस्ताव को मतदान के लिए लोकसभा में पेश किया गया तो कांग्रेस ने इसमें हिस्सा नहीं लिया और यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका था।
दिनाकरन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की स्थिति तब पैदा हुई है, जब सर्वोच्च न्यायालय के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों की समिति और केंद्र सरकार ने दिनाकरन को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत न करने का फैसला किया है।
महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा के कम से कम 50 या फिर लोकसभा के 100 सांसदों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है। हस्ताक्षरों की जांच के बाद संबंधित याचिका राज्यसभा के सभापति अथवा लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दी जाती है।
हस्ताक्षरित याचिका पाने के बाद राज्यसभा के सभापति तीन सदस्यीय समिति गठित करते हैं, जिसमें एक सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश और एक न्यायविद् शामिल होता है। यह समिति आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट सदन को सौंप देती है।
यदि यह समिति दिनाकरन को दोषी पाती है और उन्हें पद से हटाने की सिफारिश करती है तो मामले को संसद में मतदान के लिए पेश किया जाएगा। वहां दोनों सदनों में यह प्रस्ताव दो तिहाई बहुमत से पारित होने पर ही दिनाकरन के पद से हटने का रास्ता साफ हो पाएगा।

उधर पी. डी. दिनाकरन ने इस्तीफा देने की संभावना खारिज करते हुए राज्यसभा में अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

न्यायमूर्ति दिनाकरन ने तमिलनाडु में जमीन हड़पने के अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को ‘‘निराधार और गलत’’ बताया. उन्होंने कहा कि वह साबित कर सकते हैं कि उनके परिवार के पास सीमा से ज्यादा जमीन नहीं है. कर्नाटक के मुख्य न्यायाधीश से जब पूछा गया कि अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव और वकीलों के विरोध प्रदर्शन के परिदृश्य में क्या वह हट जाएंगे तो उनका जवाब था, ‘‘हटने का सवाल कहां उठता है.’’

राज्यसभा में अपने खिलाफ पेश महाभियोग प्रस्ताव पर उन्होंने कहा कि यह अपने आप में कोई साध्य नहीं है और उसके आधार पर कुछ भी निर्धारित नहीं किया जा सकता. न्यायमूर्ति दिनाकरन ने कहा, ‘‘मैं बस यही कह सकता हूं कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. दुर्भाग्यपूर्ण मेरे दृष्टिकोण से नहीं, दुर्भाग्यपूर्ण रिकॉर्ड पर उपलब्ध समूचे यथार्थ को और समूचे तथ्य पर विचार नहीं करने के लिए.’’

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