पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, January 28, 2010

25 वर्षों से पदभार के लिए भटक रही शिक्षिका को मिला न्याय


विभागीय अधिकारियों के आदेश की प्रतीक्षा में एक शिक्षिका पिछले 25 वर्ष से पदभार ग्रहण करने के लिए भटकते रहने के बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई है जिस पर हाईकोर्ट ने शिक्षिका को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्ति देने का आदेश दिया है।

दुर्ग निवासी श्रीमती शुभ लक्ष्मी नायडू की शासकीय प्राथमिक शाला जोरा जिला रायपुर में सहायक शिक्षक के पद पर 30 सितम्बर 1982 को नियुक्ति हुई थी। शिक्षिका श्रीमती नायडू बीमार हो जाने पर 4 जुलाई 83 से 25 जुलाई 1985 तक मेडिकल में रही। स्वास्थ्य ठीक होने के बाद उसने मेडिकल सर्टिफिकेट के साथ जिला शिक्षा अधिकारी से भेंटकर डयूटी ज्वाइन करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जिस पर जिला शिक्षा अधिकारी 26 जुलाई 1985 को खण्ड शिक्षा अधिकारी को पत्र लिख शिक्षिका श्रीमती नायडू को पदभार ग्रहण कराने आदेश दिया मगर खण्ड शिक्षा अधिकारी ने जिला शिक्षा अधिकारी को इसके लिए सक्षम बताते हुए कह दिया कि आप स्वयं ज्वाइन करा दें, परेशान शिक्षिका ने तमाम माध्यमों से प्रयास करने के बाद भी असफल रहने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिस पर शासन को नोटिस जारी किया गया। शासन ने जवाब के लिए वक्त मांगा। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने शासन पर दो हजार रूपए का जुर्माना करते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने का निर्देश दिया मगर शासन ने न तो जवाब प्रस्तुत किया और न ही जुर्माना अदा किया। शासन के इस रवैए पर जस्टिस सतीष अगि्होत्री ने याचिका की अंतिम सुनवाई करते हुए फैसले में राज्य शासन को निर्देश दिया है कि शिक्षिका को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्ति दिया जाए एवं 3 सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को जुर्माने की राशि का भुगतान किया जाए।

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