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Saturday, January 23, 2010

भविष्य में सुप्रीम कोर्ट की 4 क्षेत्रीय पीठें संभव।


न्यायिक व्यवस्था पर बढ़ रहे लम्बित मामलों के बोझ को कम करने के लिए देश में एक नहीं, बल्कि चार सुप्रीम कोर्ट खोले जा सकते हैं। नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता और चेन्नई में इनकी स्थापना पर विचार शुरू हो चुका है। केन्द्र सरकार लॉ कमीशन की उस सिफारिश को गम्भीरता से लेने पर विचार कर रही है जिसमें चारों महानगरों में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किए जाने की मांग की गई है।

सूत्रों के मुताबिक, लॉ कमीशन ने अपनी 229वीं रिपोर्ट में चारों मेट्रो शहरों में सुप्रीम कोर्ट बनाए जाने की सिफारिश की है। इसके साथ ही राजधानी में संवैधानिक मामले निपटाने के लिए एक फेडरल कोर्ट स्थापित किए जाने की भी बात कही गई है। मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने भी इस सिफारिश पर अपनी सहमति दे दी है।

...ताकि दिल्ली पर बोझ हो कम

चारों मेट्रों में सुप्रीम कोर्ट बनाने का यह विचार संविधान के अनुच्छेद 130 से लिया गया है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली या ऎसी ही किसी जगह पर बनाए जा सकते हैं और मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद नियुक्त किए जा सकते हैं।

कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को दी गई रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि संवैधानिक मामलों के लिए एक कॉन्स्टीटयूशन बेंच को दिल्ली में स्थापित किया जाए, जबकि इसके अलावा उत्तरी भारत के लिए दिल्ली में, दक्षिणी क्षेत्र में चेन्नई या हैदराबाद में, पूर्वी भारत के लिए कोलकाता में और पश्चिमी क्षेत्र के लिए मुंबई में सुप्रीम कोर्ट स्थापित किए जाएं। जिससे सम्बन्धित क्षेत्र के हाईकोर्ट के फैसलों व आदेशों पर दिल्ली आने के बजाए उसी क्षेत्र में सुनवाई हो सके।

कब हुआ गठन?

सुप्रीम कोर्ट देश की उच्चतम न्यायिक व्यवस्था है जिसका गठन संविधान के अध्याय चार के अनुभाग पांच के तहत स्थापित किया गया है। संविधान के चार आधार स्तम्भों में यह प्रमुख है।

अभी कितने मामले?

देश भर की अदालतों में अभी भी 3.5 करोड़ से ज्यादा मामले लम्बित हैं। इनमें से कई 1950 से लम्बित हैं। सुप्रीम कोर्ट में 53000, हाईकोर्टो में 40 लाख और निचली अदालतों में लम्बित मामलों की संख्या 2.7 करोड़ के लगभग है।

हाईकोर्टो की स्थिति

देश में कुल 21 हाईकोर्ट हैं जिनमें इलाहाबाद हाईकोर्ट में सर्वाधिक 12 लाख से ज्यादा मामले आज भी न्याय के इंतजार में हैं।

अधीनस्थ कोर्टो की दशा

अधीनस्थ कोर्टो की हालत सबसे दयनीय हैं। देश के 625 जिलों में बनीं जिला अदालतों और अतिरिक्त अदालतों में मामले बढ़कर पौने तीन करोड़ के करीब पहुंच गए हैं। जजों की कमी से जूझ रहे ये न्यायालय छोटे-छोटे मामलों को भी त्वरित नहीं निपटा पाते।

कदम कितना जरूरी

मामलों के लम्बित होने का एक मात्र कारण अब तक सिर्फ जजों की कमी ही माना जा रहा है। जिला अदालत, हाईकोर्ट से मामला निपटने के बाद सीधे दिल्ली स्थित सुप्रीम कोर्ट पहुंचता है। देश के कोने-कोने से शीर्ष अदालत में मामले लम्बित हैं। यदि चार महानगरों में शीर्ष अदालतें खोलीं जाती हैं तो विवादों की सीमा तय होगी और उचित न्यायालय में उनका आसानी से निपटारा भी हो सकता है। हालांकि, प्रश्न यह उठता है कि अब तक लंम्बित देशभर के मामलों को क्या इन नए शीर्ष न्यायालयों में स्थानान्तरित किया जाएगा या नहीं?

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