पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, January 9, 2010

न्यायाधीशों के पूल की जरूरत-सुप्रीम कोर्ट


सुप्रीम कोर्ट महसूस करता है कि देश की अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों की कमी पूरी करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को एकजुट होकर प्रयास करने होंगे और न्यायपालिका में सम्भावित रिक्त स्थानों को ध्यान में रखते हुए इसके लिए पहले से ही योग्य उम्मीदवारों का एक पूल तैयार करना होगा।
प्रधान न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन और न्यायमूर्ति बीएस चौहान की दो सदस्यीय खंडपीठ ने गुरूवार को न्यायिक व्यवस्था में व्यापक सुधार के लिए जनहित मंच नामक गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह विचार व्यक्त किए। इस याचिका पर अब 12 जनवरी को विचार किया जाएगा।
याचिका पर सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने टिप्पणी की कि अदालतों में लंबित मुकदमों के मद्देनजर देश को कम से कम 35 हजार न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी और इसके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को समेकित प्रयास करने होंगे। केंद्र सरकार इस समस्या से निपटने के लिए 50 फीसदी आर्थिक बोझ वहन करने के लिए तैयार है लेकिन राज्य इससे अधिक मदद चाहते हैं।
जनहित मंच के वकील प्रशांत भूषण ने इस समस्या के समाधान के प्रति सरकार के रवैए की उदासीनता का जिक्र करते हुए कहा कि न्यायपालिका में रिक्त स्थानों पर शीघ्र नियुक्ति की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि देश में अदालतों और न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि के बारे में सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था और विधि आयोग की सिफारिशों के बावजूद स्थिति में सुधार नहीं हुआ है। इस पर न्यायाधीशों ने कहा कि इस समय अधीनस्थ अदालतों में न्यायाधीशों के करीब 16 हजार पद हैं जिनमें से दो हजार से अधिक स्थान रिक्त हैं।
न्यायाधीशों की राय थी कि न्यायपालिका में रिक्त स्थानों का सिलसिला रोकने लिए सरकार को न्यायाधीशों के पद रिक्त होने से पहले ही पर्याप्त संख्या में नई नियुक्तियां करनी होंगी ताकि उन्हें समय रहते प्रशिक्षित करके नई जिम्मेदारी के लिए तैयार किया जा सके।

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