पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, January 31, 2010

हत्यारिन मां को आजीवन कारावास बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने चार वर्ष के पुत्र की हत्या की दोषी छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला की आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी है। न्यायाधीश पी. सदाशिवम और एच. एल. दत्तू की खंडपीठ ने सतनी बाई की छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कल कहा कि मातृत्व भगवान का मानव को दिया हुआ सबसे बड़ा उपहार है। मां और उसकी संतान के बीच का संबंध सर्वाधिक पवित्र होता है।

खंडपीठ ने 17 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा है कि कोई भी मां अपनी संतान के शरीर पर एक खरोंच तक नहीं देखना चाहती। न्यायमूर्ति दत्तू ने जाने-माने अमरीकी लेखक डब्ल्यू इरविंग के कथनों का उल्लेख करते हुए लिखा कि एक पिता अपनी संतान से मुंह फेर सकता है, भाई बहन दुश्मन हो सकते हैं, पति और पत्नी एक दूसरे को त्याग सकता है, लेकिन कोई मां अपनी संतान से मुंह नहीं फेर सकती, चाहे संतान भली हो या बुरी हो।

खंडपीठ ने लिखा है कि इस मामले में याचिकाकर्ता को अपने बेटे की लाश के पास खून से लथपथ कुल्हाड़ी लिए पाया गया। सतनी बाई ने अविभाजित मध्यप्रदेश के सीतापुर इलाके में अपने चार वर्षीय बेटे कन्नी लाल की 18 अगस्त 1996 को हत्या कर दी थी। इस मामले में निचली अदालत ने सतनी बाई को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे बाद में छत्तीसगढ उच्च न्यायालय ने सही ठहराया था। सतनी ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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