पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, January 18, 2010

पिता ऊंची जाति का तो संतान को आरक्षण नहीं-गुजरात हाईकोर्ट


गुजरात हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि ऊंची जाति के पिता और अनुसूचित जनजाति की मां के संबंध से पैदा हुए बच्चे को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
मुख्य न्यायाधीश एस.जे. मुखोपाध्याय और न्यायाधीश ए.एस. दवे की पीठ ने हाल ही में रमेश नेका नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई के बाद यह फैसला दिया। नेका ने हाईकोर्ट की एकल पीठ के फैसले को चुनौती दी थी। एकल पीठ के न्यायाधीश ने यह जानने के बाद कि उसके पिता ऊंची जाति के हैं, उसका जाति प्रमाणपत्र रद्द करने के पंचमहल जिले के अधिकारियों के आदेश को सही ठहराया था।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा, भारत के संविधान के तहत यह पहले से तय है कि कोई भी व्यक्ति जिसे अगड़ी जाति में पैदा होने के कारण जीवन की शुरूआत में लाभ मिला वह गोद लेने से, शादी करने से या धर्म परिवर्तन करने से आरक्षण का लाभ पाने के योग्य नहीं हो जाता। अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता नेका अगड़ी जाति के पिता की संतान है। हिंदू नियम के अनुसार, उन्हें इनकी जाति पिता से मिली न कि अनुसूचित जनजाति की इनकी मां से। इस वजह से अपीलकर्ता को उस दौर से नहीं गुजरना पड़ा जिसे अनुसूचित जाति या जनजाति के लोग झेलते हैं।
नेका ने कहा था कि उसका लालन पालन जनजातीय समाज में हुआ क्योंकि आदिवासी लड़की से शादी के बाद उसके पिता को समाज से निकाल दिया गया था। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

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