पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, January 24, 2010

सुप्रीम कोर्ट को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने वाले फैसले को चुनौती


सुप्रीम कोर्ट के सभी 26 जजों ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अपील दायर करने पर सहमति जताई है, जिसमें देश की शीर्षस्थ अदालत को भी सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्ट के दायरे में बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल ने हाईकोर्ट के 88 पेज के फैसले के खिलाफ शनिवार को अपील दायर की। शीर्ष कोर्ट की ओर से दायर इस अपील के विवरण की प्रतीक्षा है।जानकारी सूत्रों ने बताया कि दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाह, जस्टिस एस मुरलीधर और जस्टिस विक्रमजीत सिंह की बेंच के बहुचर्चित फैसले को चुनौती देने के मसले पर सुप्रीम कोर्ट के सभी जज एकमत हैं।

सूत्रों ने बताया कि प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन ने शीर्ष अदालत के अन्य न्यायाधीशों के साथ भी सलाह-मशविरा किया और जो आधार उसने बनाए हैं, वे उच्च न्यायालय में लिए गए आधारों के समान ही हैं. उसमें उसने कहा था कि सीजेआई के पास जो सूचना है, उसका खुलासा करने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित होगी.

अटार्नी जनरल उच्चतम न्यायालय रजिस्ट्री की तरफ से दलील देंगे. इस मामले के जल्द ही सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने की उम्मीद है. सूत्रों ने बताया कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के निर्देश पर रोक लगाने की मांग करेगी और वह इसे वृहत पीठ या संविधान पीठ को सौंपने की दलील देगी. सूत्रों ने कहा कि अपील काफी विचार-विमर्श के बाद दायर की गई क्योंकि शुरूआत में शीर्ष अदालत के न्यायाधीशों में इस बात पर मतभेद था कि अपील की जाए अथवा नहीं.

एक ऐतिहासिक फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गत 12 जनवरी को कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में आता है. उसने उच्चतम न्यायालय की अपील को खारिज करते हुए कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता न्यायाधीश का निजी विशेषाधिकार नहीं है, बल्कि उसे एक जिम्मेदारी दी गई है.

उच्च न्यायालय के फैसले को प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन के लिए करारा झटका माना जा रहा है जो लगातार कहते रहे हैं कि उनका कार्यालय आरटीआई अधिनियम के दायरे में नहीं आता है. सूत्रों ने बताया कि शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के निर्देश पर रोक लगाने की मांग करेगी और वह इसे वृहत पीठ या संविधान पीठ को सौंपने की दलील देगी.

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