पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, January 5, 2010

रुचिका केस में सिर्फ राठौड़ दोषी नहीं, जस्टिस डिलिवरी सिस्टम भी जिम्मेदार: हाई कोर्ट


पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रुचिका गिरहोत्रा से छेड़छाड़ मामले में खुद संज्ञान लेते हुए न्याय व्यवस्था पर तीखी टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि रुचिका केस 'न्याय में देरी, न्याय से वंचित होना' (जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड) का सबसे बड़ा उदाहरण है। कोर्ट का कहना था कि बड़े पुलिस अफसरों, नौकरशाहों और नेताओं के खिलाफ केसों को फास्ट ट्रैक पर लाने का वक्त आ गया है।

कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि रुचिका मामले में देरी के लिए इससे जुड़े सभी पक्षों के अलावा जस्टिस डिलिवरी सिस्टम को भी जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी। हाई कोर्ट ने पंजाब सरकार, हरियाणा सरकार और चंडीगढ़ प्रशासन को नोटिस जारी कर राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ पेंडिंग केस की जानकारी कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया है। इसके लिए इन सरकारों को 12 जनवरी तक का समय दिया गया है। अपने आदेश में रविवार को जस्टिस रंजीत सिंह ने दोनों राज्यों और चंडीगढ़ के संबंधित गृह सचिवों से एसपी और इस लेवल से ऊपर के पुलिस अफसरों, आईएएस और पीसीएस अफसरों के खिलाफ पेंडिंग केस के बारे में पूछा है, क्योंकि अदालत न्याय देने में देरी का आरोप अपने ऊपर नहीं लेना चाहती है।

जस्टिस सिंह ने कहा कि मामले में इतनी देर से फैसला आने से बड़ी संख्या में नाराज लोग उन सभी को सजा देने की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने इस मामले में कानून का उल्लंघन किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि अदालतें खुद को इस आरोप से मुक्त नहीं मान सकतीं कि उनकी वजह से ऊंचे रसूख वाले लोगों ने सिस्टम का फायदा उठाते हुए जांच या ट्रायल में देरी करवाई। उन्होंने कहा कि हमेशा से कुछ ऐसे पुलिस अफसरों, कुछ राजनेताओं और ऊंचे पदों पर बैठे लोगों का नाम सुनने में आता है, जिन्होंने अपने खिलाफ मामले में जांच नहीं होने दी या मुकदमे को नतीजे तक नहीं पहुंचने दिया।

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