पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, January 7, 2010

इस्लाम की आलोचना हो सकती है, लेकिन दुर्भावनापूर्ण नहीं: कोर्ट


इस्लाम या किसी अन्य धर्म की आलोचना की जा सकती हैं,पर दुर्भावनापूर्ण आलोचना,जिसका मकसद सांप्रदायिक नफरत फैलाना और पूरे समुदाय को शरारतपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करता हो,की इजाजत नहीं है। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने बुधवार को यह बात कही।कुरानिक छंदों की व्याख्या करने से मना करते हुए कोर्ट ने हालांकि सलाह दी कि छंदे सहसंबद्ध होनी चाहिए और व्याख्या करते वक़्त इसके ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना चाहिए।
उच्च न्यायलय की एक पूर्ण पीठ ने यह फैसला वकील आर वी भसीन द्वारा लिखी पुस्तक इस्लाम-"ए कांसेप्ट ऑफ़ पोलिटिकल वर्ल्ड इन्वैसन बाय मुस्लिम्स"पर लगे प्रतिबन्ध पर सुनवायी के दौरान कहा साथ ही न्यायलय ने इस पुस्तक पर प्रतिबन्ध बरकरार रखा.

इस पुस्तक पर महाराष्ट्र सरकार ने साल 2007 में प्रतिबन्ध इस आधार पर लगा दिया था की इसमें इस्लाम के बारे अपमानजनक टिप्पणियां की गयी है और मुसलमानों की भावनाओं का अपमान करती है। भसीन ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन मानते हुए कोर्ट में चुनौती दी थी।

1 टिप्पणियाँ:

दिनेशराय द्विवेदी said...

निर्णय पढ़ना पड़ेगा।