पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, January 7, 2010

आईपीसी के प्रावधान भूलने के लिए हाईकोर्ट ने की निचली अदालत की खिंचाई


बांबे हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आईपीसी के प्रावधानों का ध्यान नहीं रखने के लिए निचली अदालत के जज की खिंचाई की है। इस जज ने एक व्यक्ति को हत्या का दोषी ठहराया था, लेकिन उसे हल्की सजा दी थी। हाईकोर्ट ने कहा, ‘लगता है सुविज्ञ जज आईपीसी के सेक्शन 302 के प्रावधान भूल गए या उनकी उपेक्षा कर गए।’ कोर्ट ने कहा कि मुजरिम मोहम्मद अमानत अंसारी ने हत्या नहीं की बल्कि वह गैर इरादतन हत्या का दोषी है।  अंसारी पर एक दिसंबर 1998 को क्रिकेट खेल रहे बच्चों की गेंद को लेकर हुए झगड़े में उदय बागवे नामक बच्चे की हत्या का आरोप था। मुंबई स्थित सेशन कोर्ट ने उसे हत्या का दोषी ठहराते हुए 10 वर्ष की कड़ी कैद की सजा सुनाई। इस फैसले को जब हाईकोर्ट में चुनौती दी गई तो जस्टिस जेएच भाटिया ने कहा, ‘परिस्थितियों को देखते हुए यह मानना असंभव है कि आरोपी का इरादा हत्या का था।’ हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि आईपीसी के सेक्शन 302 के तहत केवल उम्रकैद या मौत की सजा दी जा सकती है।

हाईकोर्ट ने इस मामले में अंसारी को गैर इरादतन हत्या का दोषी मानते हुए उसे 10 वर्ष जेल की सजा बरकरार रखी। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि वह इतनी अवधि जेल में काट चुका है अत: उसे छोड़ दिया जाए।

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