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Thursday, January 14, 2010

हाईकोर्ट का फैसला चीफ जस्टिस का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में, सुप्रीम कोर्ट अपील करेगा।


दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि चीफ जस्टिस (सीजेआई) का पद सूचना के अधिकार कानून के दायरे में आता है। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक स्वतंत्रता किसी जज का विशेषाधिकार नहीं, बल्कि उसे सौंपी गई जिम्मेदारी है। 
मुख्य न्यायाधीश ए. पी. शाह और जस्टिस विक्रमजीत सेन व एस. मुरलीधर की तीन सदस्यीय बेंच का 88 पन्नों का यह फैसला चीफ जस्टिस के. जी. बालाकृष्णन के लिए एक निजी धक्के के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने आरटीआई ऐक्ट के तहत जजों से संबंधित संपत्ति के ब्यौरे मांगे जाने का विरोध किया था।
दिल्ली हाई कोर्ट की इस तीन सदस्यीय बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की यह दलील खारिज कर दी कि चीफ जस्टिस के पद को आरटीआई ऐक्ट के दायरे में लाने से न्यायिक स्वतंत्रता बाधित होगी। बेंच ने फैसला दिया कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का दफ्तर आरटीआई के दायरे में आता है। इसका मतलब यह हुआ कि जजों को आरटीआई के तहत संपत्ति का ब्यौरा देना होगा।

गौरतलब है कि 2 अक्तूबर 2009 हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस का दफ्तर आरटीआई के दायरे में आता है और इस तरह जजों की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्री ने दिल्ली हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच के सामने चुनौती दी थी, जिसे मंगलवार को स्पेशल बेंच ने खारिज कर दिया है।

हाई कोर्ट की स्पेशल बेंच के सामने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल ने दलील दी थी कि जजों ने संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक करने का जो प्रस्ताव दिया था वह बाध्यकारी नहीं है। उसके लिए कानूनी तौर पर उन्हें बाध्य नहीं किया जा सकता। उक्त प्रस्ताव सेल्फ रेग्युलेशन के लिए था। जजों को पब्लिक स्क्रूटनी के अंदर नहीं लाया जा सकता और अगर ऐसा किया जाता है तो इससे न्यायिक व्यवस्था के स्वतंत्रता और उसके कामकाज में दखल होने लगेगा।
उच्चतम न्यायालय ने प्रधान न्यायाधीश के पद को सूचना का अधिकार कानून के दायरे में लाने वाले दिल्ली उच्च न्यायालय के आज के फैसले को चुनौती देने का निर्णय किया है। शीर्ष अदालत से सूचना लेने संबंधी नवंबर २००७ में शुरू हुई कानूनी लड़ाई के और लंबा खिंचने की संभावना है क्योंकि उच्चतम न्यायालय के पंजीयक ने उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने का निर्णय किया है।

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