पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, February 8, 2010

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के सटीक परीक्षण की जरूरत

इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों के मामलों में ‘सबूत के मानक’ पर जोर देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि ऐसे साक्ष्यों का दूसरे दस्तावेजी सबूतों की तुलना में अधिक कड़ाई से और सटीक परीक्षण किया जाना चाहिए।

साल 2004 में महाराष्ट्र की सिन्नर सीट से शिवसेना की टिकट पर जीते और भड़काऊ भाषण देने के आरोपों का सामना कर रहे माणिकराव शिवाजी कोकाते के निर्वाचन को सही ठहराते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा‘ऐसे साक्ष्य का कड़ाई से परीक्षण नहीं किया जाना विजयी उम्मीदवार के खिलाफ गंभीर पूर्वाग्रह होगा। उसके निर्वाचन को न केवल रद्द कर दिया जाएगा बल्कि एक निश्चित अवधि के लिए उसे चुनाव लड़ने से अयोग्य भी करार दिया जा सकता है। इससे उसके राजनीतिक करियर पर बुरा असर पड़ेगा।’

न्यायमूर्ति डी के जैन और न्यायमूर्ति पी सथाशिवम की पीठ ने फैसले में कहा ‘इसलिये चुनाव याचिकाकर्ता की यह भारी जिम्मेदारी बनती है कि कदाचार के आरोपों को वह उसी तरीके से साबित करे जिस तरह से आपराधिक मामलों में किया जाता है।’माणिकराव के निर्वाचन को राकांपा कांग्रेस और आरपीआई गठबंधन के पराजित उम्मीदवार तुकाराम दिघोले ने चुनौती दी थी।

पीठ ने कहा ‘हालांकि इलेक्टॉनिक साक्ष्यों की स्वीकार्यता को लेकर नियम तय करना न तो व्यवहारिक है और न ही इसकी सलाह ही दी जा सकती है। ऐसे साक्ष्यों में किसी भी प्रकार की छेड़खानी की जरा सी भी संभावना को खत्म करने के लिए इसकी प्रामाणिकता और खरेपन को जाँचने के मकसद से दूसरे दस्तावेजी सबूतों की तुलना में इनकी अधिक कड़ाई से परीक्षण की जरूरत है।’

बंबई उच्च न्यायालय के चुनावी पंचाट के समक्ष दायर की गई याचिका के खारिज कर दिए जाने के बाद दिघोले ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी।

गौरतलब है कि चुनावी पंचाट ने माणिकराव द्वारा कथित तौर पर दिए गए भड़काऊ भाषण के सबूत के तौर दिए गए वीडियो कैसेट को वास्तविक मानने से इन्कार कर दिया था। दिघोले ने वीडियो निर्वाचन आयोग से प्राप्त करने का दावा किया था।

लेकिन मामले की सुनवाई के दौरान दिघोले पंचाट के समक्ष यह साबित नहीं कर पाए कि वीडियो कैसेट की नकल उन्हें निर्वाचन आयोग से ही प्राप्त हुई थी।

दिघोले ने माणिकराव पर मराठी भावनाओं को भड़काने का आरोप लगाया था। उसका कहना था कि माणिकराव के कथित भाषण की वजह से उसकी चुनावों में उसकी जीत की संभावनाएँ धूमिल हो गईं।

पंचाट के फैसले को सही ठहराते हुए उच्चतम न्यायालय ने अपने पूर्व के फैसलों का उदाहरण देते हुए कहा कि जीते गए उम्मीदवार के निर्वाचन के मामले में हल्के तौर पर दखल नहीं देना चाहिए।

पीठ ने कहा‘विजेता उम्मीदवार के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका कानूनी शर्तों के मुताबिक ही होनी चाहिए।’(भाषा)

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