पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, February 24, 2010

किरायेदार पर बिना वजह मामले को लंबा खींचने के लिये एक लाख का जुर्माना

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मकान मालिक के खिलाफ मुकदमे को 20 वर्षों से अधिक समय तक खींच कर उसे उसकी संपत्ति से वंचित रखने के दोषी किरायेदार पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया है ।
मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश एस. एन. धींगरा ने बताया कि किरायेदार तरह. तरह के बहाने बनाकर परिसर खाली करने के आदेश का उल्लंघन करता रहा जिससे पता चलता है कि कोई व्यक्ति कानून के साथ कैसे सफलतापूर्वक खिलवाड कर सकता है और संपत्ति के मालिक को लंबे समय तक उसके फायदों से वंचित रख सकता है1 यह मामला दक्षिणी दिल्ली के कोटला मुबारकपुर में 500 वर्ग गज संपत्ति से संबंधित है ।
न्यायमूर्ति धींगरा ने कहा कि यह याचिका निचली अदालत.. उच्च न्यायालय या कार्यकारी अदालत और उच्चतम न्यायालय के सभी फैसलों को चुनौती देकर मामले को और अधिक लटकाने की कोशिश थी। न्यायालय ने उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय समेत सभी न्यायालयों में मुकदमा हार चुके किरायेदार एस. एस. गुप्ता की याचिका खारिज कर दी और उसे मकान मालिक हिम्मत सिंह के परिसर को खाली करने के निर्देश दिये हैं। गौरतलब है कि हिम्मत सिंह की वर्ष 1983 में मौत हो चुकी है ।
न्यायमूर्ति धींगरा ने इस याचिका को फर्जी और तथ्यों से परे बताते हुये इसे खारिज कर दिया तथा मामले को लंबा खींचने के लिये याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। उन्होंने निर्देश दिया है कि अगर किरायेदार यह जुर्माना अदा नहीं कर पाता है तो न्यायालय अपनी तरफ से यह रकम मकान मालिक को देगा !
संपत्ति के मालिक के वकील मंजीत सिंह अहलूवालिया ने बताया कि किरायेदार की 1983 के डिक्री आदेश को चुनौती देने वाली याचिका उच्चतम न्यायालय समेत सभी न्यायालयों से खारिज कर दी गयी थी। इसके बावजूद उसने मामले को लटकाने के लिये विभिन्न अदालतों में याचिका दायर कर रखी थी।

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