पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, February 7, 2010

सीनियॉरिटी की अनदेखी कर बने जजों का केंद्र सरकार के पास कोई रेकॉर्ड नहीं ।

केंद्र सरकार के पास सीनियॉरिटी की अनदेखी कर बने जजों का कोई रेकॉर्ड नहीं है। यह खुलासा एक आरटीआई के जवाब में हुआ। यह हाल तब है जब पीएमओ भी हाई कोर्ट के तीन चीफ जस्टिस की नियुक्ति के मामले में सीनियॉरिटी की अनदेखी करने पर हस्तक्षेप कर चुका है। दिलचस्प यह भी है कि बार मेंबर्स यह रेकॉर्ड रखते हैं पर कानून और न्याय मंत्रालय के पास इसका कोई रेकॉर्ड नहीं है।

आरटीआई ऐक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने इस संबंध में राष्ट्रपति सचिवालय से जानकारी मांगी थी जिन्होंने इसे न्याय विभाग को ट्रांसफर कर दिया। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि उनके पास ऐसी कोई लिस्ट नहीं है  जिनमें उन जजों के नाम हो जिनकी हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन को राष्ट्रपति ने लौटाया हो। यह जानकारी भी नहीं है कि विभिन्न हाई कोर्ट में कौन सीनियॉरिटी लिस्ट की अनदेखी कर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जस्टिस डिपार्टमेंट के सेंट्रल पब्लिक इन्फॉर्मेशन ऑफिसर एस. के. श्रीवास्तव की ओर से जवाब में कहा गया कि इस तरह की कोई लिस्ट डिपार्टमेंट मेनटेन नहीं करता है।

पिछले साल नवंबर में नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी में स्पीच देते हुए कानूनविद् फाली. एस. नरीमन ने कहा था कि जस्टिस पटनायक की सीनियॉरिटी को तीन बार लांघा गया और चौथी बार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तब जब कॉलेजियम के एक सदस्य जज रिटायर हो गए। साफ है मंत्रालय के पास भले ही इन मामलों के कोई रेकॉर्ड नहीं हो पर बार मेंबर्स को भी इसकी जानकारी है।

गौरतलब है कि हाल ही में चीफ इन्फॉर्मेशन कमिशन ने सुप्रीम कोर्ट को निर्देश दिए थे कि उन तीन जजों की नियुक्ति के रेकॉर्ड पब्लिक को बताए जाएं, जिन्हें सीनियॉरिटी की अनदेखी कर नियुक्त किया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने जानकारी सार्वजनिक करने के बजाय इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से ही स्टे ले लिया।

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