पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, February 7, 2010

मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं

जबलपुर कुटुम्ब न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं है। विशेष न्यायाधीश शशिकिरण दुबे द्वारा एक महिला द्वारा दायर अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी।

श्रीमती आराधना की ओर से दायर अर्जी पर हुई सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पति दीपक से भरण-पोषण की राशि दिलाए जाने की प्रार्थना की गई थी। सुनवाई के दौरान महिला ने स्वीकार किया था कि वह ससुराल वालों के साथ एडजस्ट नहीं हो पा रही है, इसलिए वह अपने पति से बंधन मुक्त होना चाहती है। उसने इस आशय का एक पत्र अपने पिता को भी लिखा था कि ससुराल में उसका मन नहीं लगता।

इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद अदालत ने अर्जी पर फैसला देते हुए कहा कि यह पत्नी द्वारा पति का स्वैच्छिक परित्याग माना जाएगा। पति भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार खो चुकी है। इस मत के साथ अदालत ने महिला की अर्जी खारिज कर दी। प्रकरण में अनावेदक पति की ओर से अधिवक्ता सुशील कुमार मिश्रा द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता आदर्श मुनि त्रिवेदी के मार्गदर्शन में पैरवी की गई।

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