पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, February 15, 2010

सजा के वक्त आर्थिक स्थिति का भी ध्यान रखें कोर्ट - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मुजरिम का आर्थिक और सामाजिक पिछड़ापन उसके मृत्युदण्ड को आजीवन कारावास में तब्दील कराने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

अपराधी मुल्ला और गुड्डु ने 21 दिसम्बर 1995 को अन्य लोगों के साथ मिलकर पांच ग्रामीणों को अगवा कर लिया था और फिरौती की रकम नहीं मिलने पर उनकी हत्या कर दी थी। मृतकों में हरि कुमार त्रिपाठी, नन्हकी., राम किशोर, छोटकी और गंगा देई शामिल थे। न्यायाधीश पी सदाशिवम और न्यायाधीश एच एल दत्तू की खण्डपीठ ने 65 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा है कि इस मामले में आजीवन कारावास की सजा पूरी जिन्दगी चलती रहेगी बशर्ते किसी अच्छे कारणों की वजह से सरकार उसमें कटौती न करे।

न्यायाधीश सदाशिवम ने कहा कि दुर्भाग्य से अनेक ऎसे फैसले हैं जिनमें अपराधी की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इन्हीं स्थितियों के कारण कोई व्यक्ति अपराध का रास्ता अख्तियार करता है। हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि खण्डपीठ आर्थिक पिछडेपन की वजह से अनैतिकता का रास्ता अख्तियार करने को न्यायोचित नहीं ठहराती है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि हमें यह भी सोचना चाहिए कि आर्थिक पिछडेपन की वजह से अपराध की दुनिया में उतरने वाले आदमी में सुधार की गुंजाइश बरकरार रहती है। इन हत्याओं के दोषियों को उत्तरप्रदेश के सीतापुर स्थित निचली अदालत ने मृत्युदण्ड सुनाई था जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी जायज ठहराया था।

सम्पूर्ण निर्णय

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