पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, February 24, 2010

पारिवारिक अदालतों में एटॉर्नी शिरकत नहीं कर सकते-मुम्बई हाई कोर्ट

मुम्बई हाई कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि पति-पत्नी के एटॉर्नी वैवाहिक विवाद के मामले में किसी पारिवारिक अदालत में उनकी ओर से न तो शामिल हो सकते हैं और न ही जिरह कर सकते हैं। न्यायाधीश रौशन दलवी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि एटॉर्नी को किसी पार्टी की ओर से शामिल होने की इजाजत दी गई तो अदालत अयोग्य और अनघिकृत लोगों की ओर से संचालित होने लगेगी। नीलम शेवाले की ओर से दायर याचिका पर न्यायालय ने पिछले सप्ताह यह फैसला सुनाया है। याचिका में कहा गया था कि उनकी ओर से उनके एटॉर्नी को पेश होने की इजाजत दी जा सकती है, क्योंकि वह बीमार हैं, अंग्रेजी नहीं जानती हैं, पति की ओर से मानसिक रूप से प्रताडित की गई हैं और अदालती कार्यवाही के दौरान खड़ी नहीं रह सकतीं।

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