पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, February 23, 2010

ब्लैंक चेक अचूक हथियार नहीं है बैंकों का - बॉम्बे हाई कोर्ट

लोन लेने वालों से बैंक अक्सर पोस्ट डेटेड ब्लैंक चेक मांगते हैं। यह चेक भुगतान की सिक्युरिटी के तौर पर लिया जाता है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अगर ऐसा चेक बाउंस हो जाए तो लोन लेने वाले पर निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) ऐक्ट के तहत क्रिमिनल केस नहीं चलाया जा सकता।

पिछले हफ्ते यह फैसला अहमदनगर जिले के रामकृष्णा अर्बन कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी की याचिका पर सुनाया गया। सोसाइटी ने राजेंद्र वर्मा नाम के शख्स को साल 2000 में 2 लाख रुपये का लोन दिया था। वर्मा ने भुगतान की सिक्युरिटी के नाम पर 10 ब्लैंक पोस्ट डेटेड चेक जारी किए। इनमें से जनवरी 2008 का एक चेक बाउंस हो गया। इसके बाद सोसाइटी ने वर्मा के खिलाफ शिकायत की। मैजिस्ट्रेट कोर्ट ने कहा कि वर्मा एनआई ऐक्ट के तहत दोषी नहीं हैं और उन्हें बरी कर दिया गया।

सोसाइटी ने हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच में अर्जी दाखिल की और सेशन कोर्ट में अपील दाखिल करने की इजाजत मांगी। जज ने अर्जी खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने ध्यान दिलाया कि एनआई ऐक्ट का मकसद चेक को वित्तीय माध्यम के तौर पर विश्वसनीयता दिलाना है, इसका मकसद लोन की जल्द और असरदार रिकवरी नहीं है। कानून बनाने वालों ने ऐसी कल्पना नहीं की होगी कि उधार देने वाले लोग या बैंक लोन देते या मंजूर करते वक्त सिक्युरिटी के रूप में ब्लैंक या पोस्ट डेटेड चेक लेंगे। फिर एनआई एक्ट के सेक्शन 138 के तहत मुकदमा चलाने और सजा दिलाने की धमकी देकर लोन का भुगतान मांगेंगे।

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