पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, February 8, 2010

अजन्मा शिशु नाबालिग के समान : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा कि एक अजन्मे शिशु को नाबालिग बच्चे जैसा माना जा सकता है। इस आधार पर कोर्ट ने एक बीमा कंपनी को एक व्यक्ति को ढाई लाख रुपए मुआवजा देने को कहा, जिसकी गर्भवती पत्नी कीडेढ़ साल पहले सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी।जस्टिस जेआर मिथा ने प्रकाश नामक व्यक्ति की अपील स्वीकार कर ली जिसने अजन्मे बच्चे के लिए मुआवजा मांगा था। इसके पूर्व मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) ने उसकी याचिका खारिज कर दी थी।

अदालत ने फैसले में कहा, ‘याचिका स्वीकार की जाती है और याचिकाकर्ता को 17 जून 2008 को सात माह के गर्भ की मौत पर साढ़े सात फीसदी सालाना ब्याज के साथ ढाई लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश दिया जाता है।’ एमएसीटी सड़क दुर्घटना में पत्नी की मौत के मुआवजे के रूप में 6.11 लाख रुपए प्रकाश को दिए जाने का आदेश दे चुकी है।

जस्टिस मिधा ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी को एक माह के भीतर यूको बैंक में दो लाख रुपए जमा करने और शेष राशि दुर्घटना के शिकार परिवार को देने का आदेश दिया। एमएसीटी ने इस आधार पर याचिका ठुकराई थी कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गर्भस्थ शिशु का कोई जिक्र नहीं था। याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि दुर्घटना 8 जून 2008 को हुई थी और 17 जून को महिला के गर्भस्थ शिशु को निकाला गया और 14 अगस्त को महिला की मौत हुई।

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