पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, March 3, 2010

अब फैसले में देरी नहीं कर सकेंगे जज

उच्च न्यायिक सेवाओं में जवाबदेही और मानक स्थापित करने के लिए सरकार नया विधेयक लाने जा रही है। इसके तहत न्यायाधीशों को किसी मामले में बहस पूरी होने के बाद तीन महीने के अंदर निर्णय सुनाना होगा। यही नहीं, विधेयक में साफ कहा गया है कि न्यायाधीश चुनाव नहीं लड़ सकते, किसी क्लब या संगठन के सदस्य नहीं हो सकते और किसी ऐसी कंपनी के मामले की सुनवाई नहीं कर सकते, जिसके शेयर उनके पास हैं।

कानून मंत्रालय के प्रस्तावित न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक 2010 का उद्देश्य न्यायिक सेवाओं में मानक स्थापित करना तथा ऐसी प्रणाली बनाना है जिससे सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के खिलाफ दु‌र्व्यवहार एवं अयोग्यता की शिकायतों को दूर किया जा सके।

इस विधेयक में न्यायाधीशों की संपत्ति और दायित्वों की घोषणा का भी प्रावधान किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति के बाद वर्तमान बजट सत्र के दौरान ही इसे संसद के समक्ष पेश किए जाने की संभावना है।

प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि बहस पूरी होने के तीन महीने की समय-सीमा के अंदर न्यायाधीश को अपना निर्णय देना होगा। विधेयक के मसौदे में कहा गया है कि उच्च न्यायिक सेवाओं के सदस्यों को अपने न्यायिक कार्य के दौरान निष्पक्ष रहना चाहिए और उनके द्वारा दिए गए निर्णय धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान से प्रभावित नहीं होने चाहिएं।

विधेयक के अन्य दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि न्यायाधीश चुनाव नहीं लड़ सकते। वे किसी क्लब या संगठन के सदस्य नहीं हो सकते। बार काउंसिल के किसी सदस्य के साथ घनिष्ठता नहीं बढ़ा सकते। अपने संबंधियों के अलावा और किसी से उपहार या आतिथ्य नहीं स्वीकार कर सकते और उन कंपनियों के मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते जिनके शेयर उनके पास हैं।

प्रस्तावित कानून में कहा गया है कि न्यायाधीश को अपने किसी निर्णय के संबंध में मीडिया को साक्षात्कार नहीं देना चाहिए। इसके अलावा न्यायाधीशों को राजनीतिक मसलों पर किसी सार्वजनिक बहस में भाग नहीं लेना चाहिए।

न्यायाधीशों द्वारा न्यायिक मानकों को गिराने वाले किसी भी कदम को 'दु‌र्व्यवहार' माना जाएगा और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

न्यायाधीशों के विरुद्ध दु‌र्व्यवहार या भ्रष्टाचार की शिकायत को तीन न्यायाधीशों की जांच समिति के समक्ष पेश किया जाएगा। जांच समिति यदि न्यायाधीश के खिलाफ किसी शिकायत को वाजिब पाती है तो उसे न्यायिक निगरानी समिति के पास भेजा जाएगा। यह समिति मामले की जांच कर जांच रिपोर्ट को राष्ट्रपति के पास उक्त न्यायाधीश के खिलाफ कार्रवाई के लिए भेजेगी।

राज्यसभा के सभापति के रूप में उप राष्ट्रपति न्यायिक निगरानी समिति की संभवत: अध्यक्षता करेंगे। इस समिति के अन्य सदस्यों में भारत के प्रधान न्यायाधीश [सीजेआई], सीजेआई द्वारा नामांकित हाईकोर्ट के एक मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए गए दो नामचीन विधिवेत्ता शामिल होंगे।

भारत के सभी 21 हाईकोर्ट में एक-एक जांच समिति का गठन किया जाएगा। विधेयक के मुताबिक न्यायाधीश के दु‌र्व्यवहार के अनुसार उसे चेतावनी, फटकार या प्रतिबंध की सजा दी जा सकती है। लेकिन यदि न्यायिक मानकों के उल्लंघन की प्रकृति गंभीर है तो उसके खिलाफ महाभियोग लगाया जा सकेगा। यह विधेयक न्यायाधीश जांच कानून 1968 का स्थान लेगा।

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