पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, March 5, 2010

आरोपी मांग सकता है प्राथमिकी की प्रति

बांबे हाईकोर्ट ने एक ऐसा नियमन दिया है, जो किसी भी आरोपी को पुलिस की मनमानी या अत्याचार सेबचाने के लिहाज से अहम है। अदालत ने कहा है कि कोई आरोपी गिरफ्तारी के वक्त चाहे तो अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी की प्रति मांग सकता है और पुलिस को उसे वह मुहैया कराना होगा।

यह नियमन बांबे हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत के आवेदन की सुनवाई के दौरान दी। पुणे के मुहम्मद खालिद शेख [25 वर्ष] ने जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोपों के मामले में अग्रिम जमानत की मांग की थी। शेख ने कहा कि रिमांड की अवधि में उसे अपने बचाव के लिए प्राथमिकी की प्रति पाना जरूरी है। सामान्य तौर पर गिरफ्तारी के बाद आरोपी को जिस मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाता है वह मजिस्ट्रेट ही प्राथमिकी की प्रति दे सकता है। लेकिन न्यायाधीश डी.जी. कार्णिक ने कहा कि यदि मांग की जाए तो पुलिस अधिकारी को भी गिरफ्तारी के समय प्राथमिकी की प्रति देनी होगी।

शेख ने बहस में कहा कि अपराध दंड संहिता के तहत मजिस्ट्रेट को प्राथमिकी की प्रति देने का अधिकार है और यह निर्विवाद सच है कि प्राथमिकी सार्वजनिक दस्तावेज है। शेख ने कहा कि भारतीय साक्ष्य कानून 1872 की धारा 76 के तहत सरकारी अधिकारी ऐसे किसी सार्वजनिक दस्तावेज की प्रमाणित प्रति उस व्यक्ति को दे सकता है जो उसे देखना चाहे। अभियोजन पक्ष ने इस दलील का यह कहते हुए विरोध किया कि इसी तर्क के आधार पर आरोपी रिमांड के समय गवाहों के बयान की मांग भी कर सकता है। अदालत ने कहा कि आरोपी रिमांड के दौरान गवाह के बयान की प्रति पाने का हक नहीं है।

0 टिप्पणियाँ: