पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, March 11, 2010

उडीसा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को सेवानिवृत्ति का नोटिस


गत जनवरी में कालाहांडी के जिला न्यायाधीश के रुप में पदावनत किए गए उडीसा उच्च न्यायालय के पूर्व अतिरिक्त न्यायाधीश एल के मिश्रा को जबरन सेवानिवृत्ति का नोटिस थमा दिया गया है। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति मिश्रा ने उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ की ओर से कटक स्थित उनके निवास पर कल भेजे गए इस नोटिस को स्वीकार करने से मना कर दिया। न्यायमूर्ति मिश्रा और एक अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी के पटेल को 17 जनवरी 2008 को दो वर्षों के लिए उच्च न्यायालय के अतिरिक्ति न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया गया था।
हालांकि  उच्च न्यायालय के अतिरिक्ति न्यायाधीश के रुप में सेवा विस्तार मिलने या स्थानीय न्यायाधीश के रुप में न्यायमूर्ति मिश्रा की नियुक्ति की पुष्टि के सिलसिले में कोई सूचना नहीं मिलने के बाद उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने उन्हें फिर से जिला न्यायाधीश के रुप में वापस भेज दिया था। जबकि दूसरी ओर न्यायमूर्ति पटेल को उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किए जाने संबंधी सूचना मिलने पर गत 14 जनवरी को उन्हें शपथ दिलाई गई थी। हालांकि उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने न्यायमूर्ति मिश्रा को 17 जनवरी 2010 को उनके गृह कैडर में वापस भेजते हुए कालाहांडी का जिला न्यायाधीश नियुक्त किया था लेकिन उन्होंने पदभार ग्रहण नहीं किया और एक महीने की छुट्टी पर चले गए जिसे बाद में उन्होंने और एक महीने के लिए बढा लिया।
उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने न्यायमूर्ति मिश्रा के कामकाज पर विचार विमर्श करने के लिए हाल में बैठक की और न्यायिक सेवा में उनके प्रदर्शन को देखते हुए तथा कालाहांडी के जिला न्यायाधीश के रुप में पदभार ग्रहण नहीं करने पर उन्हें जबरन सेवानिवृत्ति देने का फैसला किया। पूर्ण पीठ की अनुशंसा को राज्यपाल एम सी भंडारे की मंजूरी के लिए भेज दिया गया था क्योंकि राज्यपाल ही जिला न्यायाधीश की नियुक्ति करते हैं। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि पूर्ण पीठ की सिफारिश पर राज्यपाल की मुहर लगने के बाद न्यायमूर्ति मिश्रा को कल रात नोटिस थमा दिया गया। उच्च न्यायालय ने इससे पहले न्यायमूर्ति मिश्रा को उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर मुहैया कराई गई सभी सुविधाएं वापस ले ली थी क्योंकि उन्हें जिला न्यायाधीश के रुप में पहले ही पदावनत कर दिया गया है।

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