पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, March 19, 2010

पुलिस की गिरफ्त में वकील

इंदौर में फर्जी जमानतें करवाने वाले रैकेट के मुखिया एक वकील को क्राइम ब्रांच ने गुरुवार को एमजी रोड पुलिस की मदद से गिरफ्तार किया। उसके पास से तहसीलदार की फर्जी साइन व सील लगी खाली भू-ऋण पुस्तिकाएं भी मिलीं।

इनके आधार पर वह गरीब तबके के लोगों को 200-200 रुपए देकर नकली जमानतदार बना देता था। उसका साथ देने वाले तीन एजेंटों को भी पुलिस ने पकड़ा। पुलिस को ऐसे 56 आरोपियों की सूची मिली है जिन्हें वकील ने फर्जी जमानतदारों के जरिए छुड़वाया है।

एसपी मकरंद देउस्कर को शिकायतें मिल रही थीं कि जमानत पर रिहा होने के बाद आरोपी पेशी पर नहीं आ रहे हैं। जमानतदार के नाम-पते भी फर्जी निकलते। पता चला कोर्ट में एक रैकेट सक्रिय है, जो फर्जी जमानतें करवाता है।

श्री देउस्कर ने एडिशनल एसपी क्राइम अरविंद तिवारी व डीएसपी जितेंद्र सिंह को रैकेट पकड़ने का जिम्मा सौंपा। श्री सिंह ने एसआई अनिलसिंह चौहान की टीम के गणोश पाटिल व बलराम तोमर को तलाश में भेजा। पता चला यह रैकेट वकील राजेंद्रकुमार वर्मा चला रहा है। गुरुवार शाम वह कोर्ट से निकला, क्राइम ब्रांच ने एमजी रोड पुलिस की मदद से पत्थर गोदाम रोड पर पकड़ लिया।

हर दिन 15 फर्जी जमानतें

डीएसपी जितेंद्र सिंह ने बताया राजेंद्र वर्मा पांच सालों से फर्जी जमानतें करा रहा है। वह हर दिन करीब 15 फर्जी जमानतें कराता था। उसने पार्टी लाने के लिए एजेंट रखे थे। ऐसे ही तीन एजेंट धर्मेद्र पिता लक्ष्मीनारायण शर्मा निवासी परदेशीपुरा,भागचंद पिता छोटेलाल निवासी पाटनीपुरा तथा हरिओम पिता नंदूलाल चंद्रवंशी निवासी पोलायकलां, शाजापुर को भी पकड़ा गया।

फर्जी जमानत कराने की फीस जमानत राशि की दस प्रतिशत रकम रहती थी। जैसे दस हजार की जमानत की फीस एक हजार रुपए होती थी। इसमें पांच सौ वह रखता था और बदले में फर्जी साइन व सील से तैयार भू-ऋण पुस्तिका बनाकर देता था।


दो सौ रु. फर्जी जमानतदार को मिलते थे। सौ रुपए वह वकील लेता था जो कोर्ट में जमानतदार को पेश करता तथा सौ रु. एजेंट को मिलते थे। शेष सौ रुपए ऊपरी खर्च के रहते थे। एजेंटों ने भी फर्जी जमानतदार दस-दस लड़कों की टीम तैयार कर रखी थी। उन्हें लॉजों में रखता था।

ऐसे होती थी धोखाधड़ी

डीएसपी के मुताबिक भू-ऋण पुस्तिका पर तहसीलदार के साइन व सील होने के साथ संबंधित व्यक्ति की संपत्ति का ब्योरा रहता है। ऐसे में जज संतुष्ट हो जाते हैं। राजेंद्र वर्मा भू-ऋण पुस्तिका के ऊपरी कवर की फोटोकॉपी तथा अंदर के खाली पन्नों की अलग से फोटो कॉपी कराकर नकली पुस्तिका बनाकर जमानतदार का फोटो व साइन कराता। मन से उसकी जमीन व मकान का ब्योरा लिख तहसीलदार की सील व साइन कर देता। पुलिस ने चारों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। अन्य लोगों की भी तलाश जारी है।

डीएसपी ने बताया आरोपी एजेंटों में शाजापुर के हरिओम को दस साल पहले फर्जी जमानत देने पर रुपए मिले थे। यह काम इतना पसंद आया कि वह फर्जी जमानत के धंधे में लग गया। वह दस सालों से इंदौर की एक लॉज में रह रहा था।

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