पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, March 25, 2010

पुलिस से सूचना मांगी तो लाद दिए केस

कुछ भी करो लेकिन पुलिस वालों से पंगा मत लो। यही कह रहे हैं कुछ वर्दीवाले बीकानेर में। यही वजह है कि राजस्थान के बीकानेर में पुलिस वालों ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने वाले एक शख्स का जीना हराम कर दिया। राज्य सरकार ने पूरे मामले की जांच कराने का फैसला किया है। गृह मंत्री शांति धारीवाल ने कहा कि अगर अधिकारी दोषी पाए गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

पुलिस ने महज एक महीने में इस शख्स के खिलाफ आठ मुकदमें ठोक दिए। इस शख्स के दफ्तर पर ताला जड़ दिया। सारा सामान उठा ले गए। उसकी गाड़ी को घर से उठाकर थाने में ले जाकर पटक दिया। गोवर्धन सिंह नाम के इस शख्स की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने सूचना के अधिकार के तहत जिले के एसपी से कुछ जानकारी मांग ली थी। बस इसके बाद से ही गोवर्धन सिंह पर पुलिस का ये कहर टूट पड़ा।

गोवर्धन सिंह अब तक सूचना के अधिकार के तहत सरकारी और गैर सरकारी विभागों में सौ से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा कर चुके हैं। 18 फरवरी को इन्होंने सूचना के अधिकार के तहत बीकानेर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सतीशचंद्र जांगिड़ समेत कुछ पुलिसकर्मियों की एसीआर का प्रॉपर्टी स्टेटमेंट और केस डायरी की कॉपी मांगी। प्रथम अपील अधिकारी बीकानेर के एसपी राघवेंद्र सुहासा ने अपील को खारिज कर दिया। एसपी की इस कोशिश को गलत मानते हुए राज्य सूचना आयोग ने उनके खिलाफ कार्रवाई को लिखा।


इस पर पुलिस ने पुरानी तारीख में दस्तावेज सूचना आयोग को भिजवा दिया। गोवर्धन पुलिस की उस करतूत के खिलाफ अदालत में गए। अदालत ने बीकानेर एसपी राघवेंद्र सुहासा और एएसपी सतीश चंद्र जांगिड़ के खिलाफ 22 फरवरी को मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए। आखिरकार चार मार्च को बीकानेर के कोटगेट थाना में एसपी और एएसपी के खिलाफ धारा 420 और 120बी में मुकदमा दर्ज हो गया। बस इसी के बाद से गोवर्धन की जिंदगी नर्क बन गई।


12 फरवरी को गोवर्धन के खिलाफ पुलिस ने पहला मुकदमा दर्ज किया धारा 384 में। शांता प्रसाद शर्मा ने एफआईआर में गोवर्धन पर करोड़ों की जायदाद पर इनकम टैक्स जमा न कराने का आरोप लगाया और गोर्वधन पर गुंडा एक्ट लगाकर गिरफ्तारी की मांग की। लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। 12 फरवरी को ही दूसरा मुकदमा धारा 384, 353 और 504 में दर्ज किया गया।


इस मुकदमे में बीकानेर इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल ने आरोप लगाया कि गोवर्धन सिंह ने सूचनाएं मांगने के नाम पर धमकाया, गालीगलौच की और पैसों की मांग की। 16 फरवरी को तीसरा मुकदमा दर्ज हुआ। बीकानेर के सहायक वाणिज्यक कर अधिकारी कुंदनमल बोहरा ने मुकदमे में आरोप लगाया कि आरोपी गोवर्धन सिंह ने 2008 में उसके खिलाफ झूठी शिकायतें कीं और उससे पैसे की मांग की।

इसी तरह 21 फरवरी को चौथा, 25 फरवरी को पांचवां, 26 फरवरी को छठा और 03 मार्च को सातवां मुकदमा दर्ज किया। पुलिस ने गोवर्धन ही नहीं उनके वकील भाई हनुमान सिंह को भी पुलिस ने सात मामलों में मुलजिम बना दिया। एक मामला तो आठ रुपये गबन का है। आरोप लगाया गया है कि उन्होंने आरटीआई के तरह सूचनाएं मांगी थीं तो उन्हें कुछ पेज ज्यादा दे दिए गए जिससे सरकार को आठ रुपये का नुकसान हुआ। उनकी गाड़ी को चोरी की गाड़ी बताकर क्रेन की मदद से घर से उठा लिया गया। घरवालों ने कागज दिखाए तो उन्हें कोर्ट जाने को कहा गया।

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