पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, March 26, 2010

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ जनहित याचिका

‘विवाह पूर्व यौन संबंध और बिना विवाह के साथ-साथ रहना (लिव इन रिलेशनशिप) अपराध नहीं माना जा सकता। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान कृष्ण और राधा भी साथ-साथ रहते थे।’ इस टिप्पणी पर मप्र हाई कोर्ट की इंदौर बेंच में गुरुवार को चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन, जस्टिस दीपक वर्मा व जस्टिस बीएस चव्हाण की तीन सदस्यीय खंडपीठ के खिलाफ एक जनहित याचिका लगाकर कहा गया कि यह टिप्पणी वापस ली जानी चाहिए।



हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की उक्त तीन सदस्यीय खंडपीठ ने दक्षिण भारत की अभिनेत्री खुशबू की याचिकाओं की सुनवाई में उक्त टिप्पणी की थी। इस पर आनंद ट्रस्ट के ट्रस्टी सत्यपाल आनंद ने गुरुवार को मप्र हाई कोर्ट इंदौर में जनहित याचिका पेश कर कहा कि इस उदाहरण व टिप्पणी से देश के करोड़ों लोगों को ठेस पहुंची है। इससे कानून व्यवस्था और देश के हालात बिगड़ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को इस मामले पर दोबारा सुनवाई कर अपने शब्द वापस लेना चाहिए। न्यायाधीश संविधान के ज्ञाता होते हैं धार्मिक ग्रंथों के नहीं इसलिए उन्हें ऐसी टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है।



टेलीग्राम से भेजी याचिका


श्री आनंद ने बताया गुरुवार दोपहर में उन्होंने याचिका हाई कोर्ट इंदौर में पेश की। चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों से संबद्ध था इसलिए बाद में उन्होंने हाई कोर्ट के पते पर टेलीग्राम के जरिए भी याचिका भेजी।


क्या है मामला

दक्षिण भारत की सिने तारिका खुशबू ने वर्ष 2005 में एक साक्षात्कार में कहा था कि विवाह पूर्व युवक-युवकी के साथ रहना और यौन संबंध अनुचित नहीं है। साक्षात्कार कई पत्रिकाओं में छपा था। इस पर उनके खिलाफ मद्रास के न्यायालय में 22 आपराधिक प्रकरण लगाए गए थे। मद्रास हाई कोर्ट में खुशबू ने वर्ष 2008 में अपने खिलाफ दायर प्रकरणों को समाप्त करने के लिए आवेदन दिया जो खारिज हो गया। इस पर अभिनेत्री ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रखा है।

0 टिप्पणियाँ: