पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, April 14, 2010

13 पृष्ठों के अनुवाद पर खर्च हुए साढ़े चार लाख

बोफोर्स तोप खरीद में कथित भ्रष्टाचार की जांच के दौरान आरोपी ओत्तावियो क्वात्रोच्चि को अर्जेटीना से भारत प्रत्यर्पित कराने की नाकाम रही कोशिश में सीबीआई ने महज 13 पृष्ठों के अनुवाद पर करीब साढ़े चार लाख और स्थानीय वकील पर लगभग 12.78 लाख रुपए खर्च कर डाले थे। यह खुलासा एक आरटीआई अर्जी के जरिये हुआ है।

प्रत्यर्पण से जुड़े दस्तावेजों के अंग्रेजी से स्पेनिश और स्पेनिश से अंग्रेजी में अनुवाद पर 4 लाख 44 हजार 684 रुपए आया। अनूदित दस्तावेजों में अर्जेटीना सरकार को प्रत्यर्पण के लिए भेजा अनुरोध पत्र और अल डोराडो अदालत का आदेश शामिल था।

आरटीआई कार्यकर्ता अजय अग्रवाल की अर्जी पर मिले जवाब में खुलासा हुआ कि वर्ष 2007 में क्वात्रोच्चि को अज्रेटीना से भारत प्रत्यर्पित कराने की कोशिश में सीबीआई ने अपने दो वरिष्ठ अधिकारियों को दो बार लातिन अमेरिकी देश भेजा। तब इस इतालवी कारोबारी के खिलाफ इंटरपोल का वॉरंट जारी था। उसे अर्जेंटीना में छह फरवरी 2007 को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद फरवरी और जून 2007 में सीबीआई अधिकारी आरोपी को प्रत्यर्पित कराने के मकसद से अर्जेटीना गए।

इससे पहले अभिषेक शुक्ला को मिले आरटीआई अर्जी के जवाब में सीबीआई ने कहा था कि क्वात्रोच्चि के प्रत्यर्पण की कोशिश में उसके दो अधिकारियों की यात्रा पर 14 लाख 15 हजार 622 रुपए खर्च हुए थे। यह बात समझ से परे है कि इतने कम पृष्ठों के अनुवाद पर इतनी अधिक राशि कैसे खर्च हुई। सीबीआई के जवाब में कहा गया कि प्रत्यर्पित कराने के लिये एक स्थानीय वकील की भी मदद ली गयी। उसे 12 लाख 78 हजार की राशि दी गयी। स्थानीय वकील के रहने और आवागमन पर 1 लाख 27 हजार रुपऐ की अतिरिक्त राशि खर्च हुई। मलेशियाई प्रशासन ने भी क्वात्रोच्चि को 1999 में हिरासत में लिया था। तब भी सीबीआई उसे भारत प्रत्यर्पित कराने में नाकाम रही थी।

1 टिप्पणियाँ:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

इतना खर्च संभव हो सकता है. हमारे यहाँ पंद्रह हज़ार मासिक की तनखा में एक टायपिस्ट पूरे महीने खटता है जबकि अमेरिका में फ्रीलांसर इतना रुपया चार घंटे में कमा सकते हैं. यह बात मैं व्यक्तिगत अनुभव से कह रहा हूँ. मैं सरकारी अनुवादक हूँ और ऐसे अनुवादकों को जानता हूँ जो दिल्ली में ही एक पेज के अनुवाद का पांच से दस हज़ार रूपये लेते हैं तो विदेशों की तो बात ही दूसरी है. अनुभवी फ्रीलांसर अनुवादक प्रतिमाह लाखों कमाते हैं. लैंग्वेज पेयर यूनिक होना चाहिए. अंगरेजी-हिंदी-अंग्रेजी करनेवाले सैंकड़ों मिलेंगे लेकिन तमिल-कोरियन-तमिल या फ्रेंच-जापानी-फ्रेंच ढूंढें नहीं मिलेंगे.