पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, April 23, 2010

राष्ट्रीय चिह्न के सम्मान के लिए दसवीं की छात्रा दीपशिखा ने की पैरवी

राष्ट्रीय चिह्न के अपमान के मामले को लेकर चंडीगढ़ के सेक्रेड हार्ट स्कूल की दसवीं की छात्रा वीरवार को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट पहुंच गई। याचिका पर चीफ जस्टिस मुकुल मुदगल व जस्टिस जसबीर सिंह की खंडपीठ ने 27 मई के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय, हरियाणा व पंजाब सरकार तथा चंडीगढ़ प्रशासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

सेक्टर-48 की दीपशिखा सिंह ने जनहित याचिका में कहा है कि वाहनों के आगे नंबर प्लेट पर लगा राष्ट्रीय चिह्न कमर से नीचे के हिस्से पर लगा होता है। वाहन चालक के पैरों के समान ऊंचाई पर लगा होने के कारण यह राष्ट्रीय चिह्न का निरादर है और स्टेट एम्ब्लम ऑफ इंडिया एक्ट व नियमों की भी अनदेखी है।

इसके मुताबिक कमर की ऊंचाई से नीचे राष्ट्रीय चिह्न नहीं लगा सकते। याचिका में एक अन्य उदाहरण देते हुए कहा गया कि हाल ही में पंजाब की मंडियों में बोरियों के ऊपर राष्ट्रीय चिह्न लगा पाया गया। समाचार पत्रों में इन बोरियों के ऊपर श्रमिकों को बैठे दिखाया गया है। यह राष्ट्रीय चिह्न का सरासर निरादर है जिस पर रोक लगाई जाए। दीपशिखा ने कोर्ट में यह भी कहा कि स्कूलों के पाठ्यक्रम में राष्ट्रीय प्रतीकों के सम्मान से संबंधित नियम कानून के बारे में विस्तार से बताया जाए।

दीपशिखा ने अपने केस की पैरवी अदालत में खुद ही की। चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान पूछा कि पढ़ाई पूरी कर क्या बनना चाहोगी? उत्तर का इंतजार किए बिना ही चीफ जस्टिस ने कहा कि शायद आपके लिए वकील बनना ही ठीक रहेगा। इस पर अदालत के भीतर मौजूद वकीलों के चेहरों पर मुस्कराहट तैरती नजर आई।

सुनवाई से पहले चीफ जस्टिस ने दीपशिखा से पूछा था कि आप वकील की मदद लेना चाहेंगी, तो उसने हां में जवाब दिया था। फिर दीपशिखा से कहा गया कि अपनी बात संक्षेप में बताइए, जिसपर दीपशिखा ने 10 मिनट में अपनी बात रखी। दीपशिखा ने भास्कर संवाददाता को बताया कि पहले दिन बुधवार को जब याचिका दायर की थी तो नर्वस थीं। हालांकि इस केस से संबंधित पेपर प्रोसेस उन्होंने खुद ही किया। राष्ट्रीय चिह्न के बारे में उन्होंने इंटरनेट से काफी जानकारी जुटाई।

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