पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Tuesday, April 6, 2010

मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा कानून के उल्लंघन पर रोक

दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून के उल्लंघन के मामले में राजधानी की एक छात्रा के फेल होने पर स्कूल से निष्कासन पर रोक लगा दी है और उसकी पढाई जारी रखने का निर्देश जारी किया है।
न्यायमूर्ति कै लाश गंभीर ने आज इस मामले की सुनवाई करते हुए यह स्थगनादेश जारी किया है। गौरतलब है कि दिल्ली के राजनिवास इलाके में स्थित सेंट जेबियर सीनियर सेकेंडरी स्कूल ने छठी कक्षा की छात्रा सुमन भाटी को फेल होने पर स्कूल से निकाल दिया था। सुश्री भाटी के पिता नरेश भाटी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में शनिवार को एक याचिका दाखिल कर अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगायी थी। उनकी दलील थी कि स्कूल का यह निर्णय एक अप्रैल से देश में लागू हुए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून का सरासर उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने एक अप्रैल को इस कानून के कारगर क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की राज्यों से अपील की थी। लेकिन इसके तीन दिन के भीतर ही अदालत के सामने यह मामला सामने लाया गया कि देश की राजधानी दिल्ली में इस कानून का सरासर उल्लंघन कर एक छात्रा को शिक्षा के अधिकार से वंचित किया गया। श्री भाटी के वकील अशोक अग्रवाल ने बताया कि न्यायमूर्ति कैलाश गंभीर ने सुमन भाटी के फेल होन पर सेंट जेबियर स्कूल से निकाले जाने के फैसले पर रोक लगा दी है और स्कूल प्रशान को निर्देश दिया है कि वह उस छात्रा को कल से स्कूल में पढाई जारी रहने दे। श्री नरेश भाटी ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि स्कूल का फैसला संविधान की धारा 226 तथा मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 एवं संविधान के अनुच्छेद 38 21 एवं 21..ए एवं दिल्ली स्कूल शिक्षा कानून का उल्लंघन है। श्री अग्रवाल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब सरकार लडकियों को आगे बढाने. उन्हें स्कूल में प्रोत्साहित करने की नीति और कानून बना रही है. एक स्कूल छठी कक्षा की छात्रो को स्कूल से बाहर कर उसके भविष्य तथा करियर को बिगाडने में लगा है।

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