पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Saturday, April 10, 2010

रामलला की पूजा की इजाजत देने की अर्जी मंजूर

उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में विवादित स्थल पर स्थित मंदिर में भगवान राम की पूजा करने पर अधिकारियों की ओर से कथित तौर पर लगाई गई अतर्कसंगत पाबंदियों को हटाने संबंधी याचिका पर विचार करने पर शुक्रवार को सहमति जता दी।
प्रधान न्यायाधीश के जी बालकृष्णन और न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की पीठ ने कहा कि हम आपकी अर्जी पर विचार करेंगे। पीठ ने जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रहमण्यम स्वामी से इस मामले में नया आवेदन देने को कहा। गौरतलब है कि स्वामी इस मामले में एक पक्ष हैं।
पीठ ने कहा कि आपको उचित आवेदन दाखिल करना होगा और तभी प्रतिवादी अपना जवाब दाखिल कर सकेंगे। पीठ ने स्वामी को आवेदन देने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया।
जनता पार्टी प्रमुख ने न्यायालय से कहा कि उन्होंने पिछले साल मार्च में शीर्ष न्यायालय ओर से दिए गए दिशा-निर्देश के अनुसार एक हलफनामा दायर किया है और उसमें ये बातें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि मेरी प्रार्थना पूजा पर लगाई गई पाबंदी के खिलाफ है। उन्होंने पीठ का ध्यान आकर्षित किया कि उन्हें लंबित मामले में पक्ष के तौर पर शामिल किया गया है।

संक्षिप्त सुनवाई के दौरान स्वामी ने पीठ को स्पष्ट किया कि वह यह सवाल नहीं उठा रहे हैं कि उस स्थान पर राम मंदिर बनाया जाए या नहीं बल्कि उनका निवेदन मंदिर में भगवान राम की पूजा तक सीमित है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने अयोध्या में विवादित स्थल पर स्थित मंदिर में भगवान राम की पूजा करने पर अतर्कसंगत पाबंदी लगा रखी है।

इससे पहले 29 जनवरी को स्वामी ने कहा था कि उस स्थल पर कानूनी अधिकार को लेकर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में लंबित विवाद का अंतिम नतीजा चाहे जो भी हो, अधिकारियों को प्रतिमाओं के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं के लिए पर्याप्त इंतजाम सुनिश्चित करना चाहिए। ऐसा नहीं किया जाना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है।
स्वामी ने दावा किया है कि फैजाबाद जिले के आयुक्त एवं वैधानिक रिसीवर के परामर्श से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पूजा पर अंकुश लगाया जाना अतर्कसंगत और अनावश्यक रूप से कठोर है। अपने आवेदन के समर्थन पर पीठ के समक्ष स्वामी की ओर से रखे गए हलफनामे में कहा गया है, इस आवेदक (स्वामी) के अनुसार ये नियमन काफी अपमानजनक, अतर्कसंगत और वृद्ध, अशक्त या महिला श्रद्धालुओं के लिए खासतौर पर काफी कठोर हैं।
स्वामी ने कहा था कि मामले पर तत्काल सुनवाई किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे लोक स्वास्थ्य और नैतिकता का सवाल जुड़ा हुआ है और वह श्रद्धालुओं की तरफ से राहत की मांग कर रहे हैं।

0 टिप्पणियाँ: