पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, May 7, 2010

फ़ांसी चढ़ेगा कसाब

आख़िरकार मुंबई को न्याय मिला. 26-11 हमले की सुनवाई कर रहे स्पेशल कोर्ट के जज एमएल तहलियानी ने गुरुवार को आतंकी अजमल कसाब को सजा-ए-मौत की सजा सुनायी. कसाब यहां आर्थर रोड स्थित जेल में बंद है. इसी जेल में बनी विशेष अदालत ने कसाब को गत सोमवार को 83 मामलों में दोषी करार दिया था.एक मात्र जिंदा बचा आतंकी सीमा पार से समुद्री रास्ते आये 10 आतंकवादियों के साथ मुंबई में तीन दिन तक हमला करनेवाले इन आतंकवादियों में से कसाब एकमात्र जिंदा बचा था. इस मामले से जुड़े दो भारतीय सह आरोपी फ़हीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद को अदालत ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया था. इस हमले में नौ आतंकवादी सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये थे.

क्या कहा जज तहलियानी ने

कसाब के सुधरने की कोई संभावना नहीं है. वह अपनी मरजी से आतंकी बना था. उस पर रहम नहीं किया जा सकता. उसेजिंदा रखना समाज के लिए खतरनाक है.यह देश की जीत है. इससे पीड़ितों के परिवारों को खुशी मिलेगी. मैं इस फ़ैसले से खुश हं. पीड़ितों के परिवारों को न्याय दिलाने की मेरी कोशिश सफ़ल हई है. उज्ज्वल निकम, सरकारी वकीलमैंने कसाब पूछा- क्या वह कुछ कहना चाहता है? एक बार फ़िर उसने सिर हिला कुछ कहने की इच्छा से इनकार किया. 


पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब के पास फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने का विकल्प है। आपराधिक प्रक्रिया संहित की धारा 366 (एक) के अनुसार जेल अधिकारियों द्वारा सजा के पालन से पहले बंबई उच्च न्यायालय को उस पर मुहर लगानी होगी।

दोषी व्यक्ति भी सुनवाई अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है जो उसकी पुष्टि कर सकती है उसे कम कर सकती है अथवा सभी आरोपों से बरी कर सकती है। इसके अलावा संविधान का अनुच्छेद 134 और आपराधिक प्रक्रिया संहिता उच्च न्यायालय के सजा पर पुष्टि के बाद दोषी को उच्चतम न्यायालय में अपील करने का अधिकार देता है ताकि न्यायालय निर्णय करे कि क्या मामला विचार लायक है अथवा नहीं।

इन सब विकल्पों के अतिरिक्त कोई दोषी इस आधार पर विशेष अनुमति याचिका न्यायालय में दायर कर सकता है कि मामले के कई ठोस कानूनी सवाल हैं जिन्हें उसे तय करना है। संवैधानिक प्रावधान के तहत लेकिन यह न्यायालय का विवेकाधिकार है कि वह विशेष अनुमति याचिका को स्वीकार करे अथवा नहीं।

दोनों अपीली अदालतों में की गई अपील उसके समक्ष उठाए गए कानूनी सवाल के निर्धारण तक सीमित होगी। उच्चतम न्यायालय के बाद भी दोषी राष्ट्रपति से गुहार लगा सकता है जो अपने अधिकार के तहत दोषी को माफी तक दे सकता है।

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