पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Wednesday, May 19, 2010

''मृत्यु पूर्व बयान पर सावधानी बरतें अदालतें'' - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालतों को मृत्यु पूर्व बयानों पर विचार करते हुए बहुत सावधानी बरतनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मृतक ने बगैर किसी दबाव के पूरे होश में स्वेच्छा से सही बयान दिया है।
अदालत ने विवाह के एक सप्ताह के भीतर ही दहेज की खातिर नवविवाहिता को जलाकर मारने की लोमहर्षक घटना में जेठ की सजा बरकरार रखते हुए मृत्यु पूर्व बयान के बारे में अदालतों को सचेत किया है।
न्यायमूर्ति वीएस सिरपुर्कर और मुकुन्दकम शर्मा की खंडपीठ ने देवरानी को जलाकार मारने के अपराध में जेठ पूरन चंद की सजा बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी। इस मामले में नवविवाहिता संतोष की हत्या के अपराध में दोषी ठहराए गए पति गुरदयाल ने फैसले के खिलाफ अपील दायर नहीं की थी।
इस मामले में संतोष का विवाह आठ दिसंबर 1997 को हुआ था लेकिन एक सप्ताह के भीतर ही उसे दहेज की खातिर प्रताडि़त किया जाने लगा था। अंतत: 15 दिसंबर 1997 को ससुराल में उसके ऊपर मिट्टी का तेल छिड़कर आग लगा दी गई थी। नवविवाहिता ने मृत्यु से पूर्व चंडीगढ़ के अस्पताल में पूर्व न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपना बयान दिया था। जेठ पूरन चंद ने अपनी अपील में मृत्यु पूर्व बयान को ही मुख्य आधार बनाया था।
न्यायाधीशों ने पूरन चंद की अपील खारिज करते हुए कहा कि निचली अदालतों को मृत्यु पूर्व दिए गए बयान पर बहुत बारीकी से विचार करना चाहिए क्योंकि ऐसा बयान देने वाला तो जिरह के लिए उपलबध होता नहीं है जो अभियुक्त के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन जाती है। न्यायाधीशों ने कहा कि कई मामलों में तो अपने पति के शांतिपूर्ण और सुखमय जीवन गुजारने की आस ससुराल के उन सदस्यों के नाम घसीट लेती है जिन्हें वह असुविधाजनक महसूस करती हैं।
कई बार रिश्तेदार भी जांच एजेंसी को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ऐसी स्थिति में जांच एजेंसी द्वारा दर्ज मृत्यु पूर्व बयान की बहुत बारीकी से जांच की जानी चाहिए और अदालत को घटना के आसपास की परिस्थितियों को भी ध्यान रखना चाहिए।

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