पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, June 25, 2010

साथी को चीरकर खा गया था, तीस साल की जेल


निकोलस कोकेग्न को आखिर उसके किए की सजा मिल ही गई, फ्रांस के इस दरिंदे दोस्त को फ्रांस की एक अदालत ने तीस साल की कड़ी सजा सुनाई है। अदालत ने निकोलस द्वारा किए गए अपराध को वहशीपन की इंतहा करार देते हुए यह सजा सुनाई। जेल में अपने ही साथी का फेफड़ा चट कर जाने वाले 38 वर्षीय निकोलस ने स्वीकार किया था कि उसने जेल में उसके साथ बंद साथी कैदी का बेरहमी से कत्ल कर उसके मांस का स्वाद चखा था।

उसने अपनी दरिंदगी की दास्तान कोर्ट के सामने बयांकरते हुए कहा था कि साफ-सफाई को लेकर हुए मामूली से झगड़े के बाद उसने साथी कै दी थिएरी बॉड्री का सीना चीर डाला और उसका फेफड़ा चबा गया। पहले तो उसने बॉड्री के फेफड़े को कच्च चबाया, लेकिन बाद में उसे जायकेदार बनाने के लिए उसने उसे फ्राई करके खाया।

अदालत ने चार दिनों गंभीर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया है। अपराधी निकोलस को इस बेहद ही वहशियाने जुर्म के लिए तीस साल सलाखों के पीछे रहने की सजा दी गई है।

निकोलस ने अदालत में सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखतेहुए कहा कि घटना के पहले वह बार-बार मनोवैज्ञानिक इलाज की मांग कर रहा था। उसने कहा कि अगर जेल अधिकारियों ने उसकी गुहार सुन ली होती तो शायद वह ऐसा नहीं करता और इस घटना को टाला जा सकता था। वहीं निकोलस के वकील फेबियन पिच्चीओट्टीनो ने अदालत से माफी की गुहार लगायी। बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट से कहा कि आरोपी दिमागी तौर पर असामान्य है। लिहाजा उसे इलाज की जरूरत है न कि सजा की। लेकिन अदालत ने बचाव पक्ष की दलील को ठुकराते हुए उसे इस घिनौने अपराध को अंजाम देने का दोषी बताया।

फैशन ने महिला वकील को किया कोर्ट से बाहर.

आधुनिक फैशन हमेशा वाहवाही दिलाए ऐसा नहीं होता। कभी-कभी फैशन भी बेइज्जती का सबब बन सकता है। मैनहैटन में एक ऐसा ही मामला सामने आया है, जहां की शीर्ष अदालत ने एक युवती को भरी अदालत से बाहर निकाल दिया।

अदालत के जज ने 19 वर्षीय नेका एनियॉर्ज की टी-शर्ट पर F**** लिखा होने पर ऐतराज जताया। जज ने इसे अदालत की तौहीन मानते हुए नेका को बेइज्जत करते हुए बाहर निकाल दिया। हुआ यूं कि नेका अदालत की कार्वाइ के दौरान अगली ही कतार में बैठी थी। अचानक जज की निगाह नेका की टी-शर्ट पर लिखी लाइन पर गयी जिस पर F**** लिखा होना जज को नागवार गुजरा।

यह देखते ही जज ने नेका से कठोरता भरी आवाज में पूछा कि क्या अदालत में ऐसी टी शर्ट पहनना अदालत की तौहीन नहीं है? जब नेका ने जवाब देना चाहा तो अदालत ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा कि तुम अपनी गलती छिपाने के बहाने बना रही हो। इतना कहते हुए अदालत ने मौजूद पुलिसवालों से नेका को जबरन बाहर निकालने का हुक्म सुनाया।

यू ट्यूब ने जीती कानूनी जंग

इंटरनेट की दुनिया के महारथी गूगल ने अपनी वीडियो साइट यू ट्यूब पर दायर कॉपीराइट का़नून के उल्लंघन का मुकदमा जीत लिया है। गूगल के खिलाफ यह मुकदमा अमेरिकी मीडिया कंपनी वायकॉम ने दायर किया था। वायकॉम का कहना था कि यू ट्यूब ने बिना कॉपीराइट के हजारों वीडियो अपलोड रोकने के लिए कोई उपाय नहीं किए, इसलिए कंपनी को हर्जाने के रूप में एक अरब डॉलर देने चाहिए। लेकिन यूएस डिस्ट्रिक्‍ट जज लुई स्‍टैंटन ने अपने 30 पेज के फैसले में कहा कि गूगल और यू ट्यूब ने गैरकानूनी वीडियो के मामले किसी तरह के कॉपीराइट कानून का उल्लंघन नहीं किया है।
अदालत ने कहा कि गूगल और यू ट्यूब को महज इसलिए दोषी ठहराना उचित नहीं होगा कि उन्‍हें इस बात की जानकारी है कि वीडियो को गैरकानूनी तरीके से पोस्‍ट किया जा सकता है। हालांकि वायकॉम अदालत के इस फैसले से संतुष्‍ट नहीं है और इसने इस फैसले के खिलाफ अपील करने की घोषणा की है।

अभिव्यक्ति की आजादी का समर्थन करने वालों ने अदालत के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा है कि इससे इंटरनेट आपसी भागीदारी का माध्यम बना रहेगा। इसके पहले भी यू ट्यूब और गूगल विवादों में घिरे हैं। हाल में पाकिस्तान की सरकार ने यू ट्यूब पर प्रतिबंध लगा दिया था। पाकिस्तान का कहना है कि यू-ट्यूब के कई ऐसे पन्ने हैं जिन पर पैगम्बर मोहम्मद की तस्वीरें हैं और पैगम्बर मोहम्मद के चित्र बनाना या प्रकाशित करना इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ है।

Thursday, June 17, 2010

राजनीति पर राजनीति, भाजपा फंसी झमेले में

भारतीय जनता पार्टी 'राजनीति' के झमेले में उलझ गई है। राज्यसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर भाजपा विधायकों के मनोरंजन के लिए पाइरेटेड सीडी के जरिए प्रकाश झा की फिल्म 'राजनीति' दिखाई गई। इसको लेकर भाजपा विधायकों के खिलाफ कार्रवाई के लिए अदालत में इस्तगासा दायर किया गया है। गुस्साए निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा ने भी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है।

राज्यसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर मंगलवार को जयपुर के एक होटल में भाजपा की बैठक हुई थी। करीब 70 विधायकों के साथ पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी महासचिव वसुंधरा राजे भी मौजूद थीं। बैठक के बाद विधायकों के मनोरंजन के लिए फिल्म भी दिखाई गई। जयपुर के योगेंद्र सिंह ने इस मामले में शहर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष एक इस्तगासा दायर कर पाइरेटेड सीडी से फिल्म दिखाए जाने को आपराधिक मामला बताते हुए भाजपा विधायक दल के सचेतक राजेंद्र राठौड़, जिस ग्रीन होटल में विधायकों को फिल्म दिखाई गई है, उसके मालिक रमाकांत शर्मा के खिलाफ थाने में मामला दर्ज कराने के आदेश देने की मांग की है। योगेंद्र सिंह ने न्यायालय से कहा है कि यह फिल्म अभी कुछ दिन पहले ही रिलीज हुई है। इसके कॉपी राइट एक्ट के तहत किसी तरह की सीडी अभी तक बाजार में जारी नहीं हुई है। विधायकों को खुश करने के लिए दिखाई गई इस फिल्म का वैध लाइसेंस भी नहीं था। इसलिए यह कॉपी राइट एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धारा 120 का उल्लंघन है। योगेंद्र सिंह ने इस्तगासा में कहा है कि उसने मंगलवार रात जयपुर के मुहाना थाने में मुकदमा दर्ज कराने का प्रयास किया। लेकिन भाजपा नेताओं और होटल मालिक ने प्रभाव का इस्तेमाल कर मुकदमा दर्ज नहीं होने दिया। योगेंद्र सिंह की ओर से वकील अजय कुमार जैन और सीपी रत्नू ने कोर्ट में इस्तगासा पेश किया।

भाजपा विधायक दल के सचेतक राजेंद्र राठौड़ ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि विधायक जिस होटल में ठहरे हुए हैं, उस होटल के मालिक ने फिल्म दिखाई है। यह होटल मालिक और फिल्म निर्माता प्रकाश झा के बीच का मामला है, इसमें पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है।

सेक्स के बदले माफ़ करता था सज़ा, अब खुद भुगतेगा सजा

एक ब्रिटिश यातायात पुलिस अधिकारी को कोर्ट ने साढ़े तीन साल की सजा सुनाई है। उसका अपराध यह था कि वह नियमों को तो़डने वाली महिलाओं को यौन संबंधों का प्रस्ताव देता था और उसका प्रस्ताव मान लेने पर उन्हें सजा-जुर्माना से मुक्त कर देता था। तेतीस वर्षीय इस यातायात पुलिस अधिकारी जेमी स्लेटर को कारडिफ क्राउन कोर्ट ने गलत बर्ताव के लिए साढ़े तीन साल कैद की सजा सुनाई है। 
ये अधिकारी गाड़ी चला रही महिलाओं को पहले रोकता था और फिर कहता था कि अगर वे उसके साथ यौन संबंध बनाएँगी तो वे उन्हें जाने देंगे और कोई जुर्माना वगैरह नहीं लगाएँगे.

कोर्ट में सुनवाई के दौरान बताया गया कि कैसे ये अधिकारी पुलिस नेशनल कंप्यूटर की मदद से पीड़ित महिलाओं के बारे में निजी जानकारी इकट्ठा करता था. जेमी स्लेटर शादीशुदा हैं और उनके दो बच्चे हैं. उन्होंने छह महिलाओं को गाड़ी चलाने से जुड़े छोटे-मोटे मामलों में पहले रोका और फिर उनसे मोबाइल नंबर माँगे. बाद में पुलिस अधिकारी ने इन महिला चालकों को एसएमएस किया कि कि वे उसके साथ यौन संबंध बनाएँ.

कोर्ट में बताया गया कि जिन महिलाओं ने इनकार कर दिया उन्हें जेमी स्लेटर ने बाद में परेशान किया. पुलिस अधिकारी ने ऐसे बर्ताव किया है जैसे कोई शिकारी अपने शिकार के साथ करता है. इस सब से पीड़ितों को तनाव से गुज़रना पड़ा. इससे साउथ वेल्स पुलिस में लोगों का विश्वास कम हुआ है

जज

अभियोजन पक्ष के पीटर डेविस ने बताया कि पीड़ित महिलाएँ बेबस महसूस कर रही थीं क्योंकि जेमी एक पुलिस अधिकारी थे. पीटर डेविस ने कोर्ट में एक घटना के बारे में बताया, एक बार एक महिला केवल कामचलाउ लाइसेंस लेकर गाड़ी चला रही थीं और जेमी ने उन्हें रोक लिया. जेमी स्लेटर ने महिला से कहा कि कार ज़ब्त करनी पड़ेगी.ये सुनकर महिला घबरा गईं और रोने लगी. वे जेमी को अपना फ़ोन नंबर देने पर राज़ी हो गई ताकि उसकी कार ज़ब्त न हो.

उन्होंने कोर्ट को आगे बताया, "दोनों का प्रेम संबंध शुरु हो गया और दोनों ने एक बार यौन संबंध भी बनाया- उस समय जेमी ड्यूटी पर थे और उन्हें पुलिस रेडियो पर एक आपात कॉल भी आई थी. जेमी ने सड़क पर जाकर गशत भी लगाई, तब वो महिला उनकी गाड़ी में ही छिपी हुई थी."

पीटर डेविस के मुताबिक जब महिला के पति को इस बारे में पता चला तो जेमी स्लेटर ने पुलिस के डाटाबेस से उसका नंबर निकाला और उसे चिढ़ाने वाले एसएमएस भी भेजे.

एक अन्य घटना में पुलिस अधिकारी जेमी ने लाल बत्ती पार करने के लिए एक महिला को रोक लिया और उससे फ़ोन नंबर माँगा. बाद में उस महिला को जेमी ने कई एसएमएस भेजे. इस घटना के बाद वो लड़की काफ़ी सहम गई और कहा कि पुलिस पर से उसका भरोसा उठ गया है.

जेमी स्लेटर को सज़ा सुनाते हुए जज ने कहा, “पुलिस अधिकारी ने ऐसे बर्ताव किया है जैसे कोई शिकारी अपने शिकार के साथ करता है. इस सब से पीड़ितों को तनाव से गुज़रना पड़ा. इससे साउथ वेल्स पुलिस में लोगों का विश्वास कम हुआ है.”

जेमी स्लेटर का बचाव कर रहे टॉम क्रोथर ने कहा कि जेमी को अपनी हरकतों पर अफ़सोस है. जेमी ने आठ महिलाओं से जुड़े आठ अलग-अलग मामलों में अपना जुर्म स्वीकार किया है

Tuesday, June 15, 2010

सगोत्र विवाह मसले पर उच्च न्यायालय जाए -सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को समान गोत्र में विवाह के मुद्दे पर जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से केंद्र सरकार को समान गोत्र में होने वाली शादियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निषिध्द मानने का निर्देश देने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के वकील के. टी. एस. तुलसी से कहा कि इस संबंध में जनहित याचिका दायर करने वाले नरेश कादयान को इस मामले में उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा जाए।

याचिका में कहा गया है कि समान गोत्र में किए जाने वाले विवाहों को अमान्य घोषित करने के लिए कानून में संशोधन करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका में कहा गया है कि चिकित्सा विज्ञान में साबित किया गया है कि करीबी संबंधियों का विवाह होने से आनुवांशिक बीमारियां पैदा होती हैं। इस तरह के विवाह को अनुमति देने से समाज का विनाश होता है।

याचिका में कहा गया कि हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक समान गोत्र में विवाह मान्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि कई जातियों में माता, पिता, नानी और दादी के गोत्र वाले लड़के या लड़की से विवाह नहीं किया जाता है।

याचिका में उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में सभी जातियों के हिन्दुओं के लिए समान गोत्र में विवाह के मुद्दे पर निर्णय करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्ष में एक आयोग बनाए जाने की मांग भी की गई।

याचिकाकर्ता ने कहा कि समान गोत्र में विवाह के मामलों से धर्म की आजादी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है।

एंडरसन मामले में अर्जुन सिंह सहित चार लोगों के खिलाफ कोर्ट में याचिका

एंडरसन को फरार करने के मदद करने के मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह सहित चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने को लेकर सीजेएम कोर्ट में याचिका लगाई गई है। जस्टिस उषा तिवारी की कोर्ट में पेश परिवाद पत्र में अर्जुन सिंह,उनके पुत्र और कांग्रेस विधायक अजय सिंह, तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रह्मस्वरूप एवं तत्कालीन टीआई सुरेंद्र सिंह को आरोपी बनाए गया है। सोमवार को एडवोकेट फुरकान खान की ओर से पेश इस्तागासे पर मजिस्ट्रेट ने बयान दर्ज करने के लिए 29 जून तारीख तय की है।

यहां यर काबिलेगौर है कि तत्कालीन प्रमुख सचिव ब्रह्मस्वरूप की मौत हो चुकी है। इस्तगासे में लिखा है कि गैस रिसन की घटना के बाद हनुमानगंज पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई थी। 7 दिसंबर 1984 को आरोपी एंडरसन भोपाल आया था।

हनुमानगंज पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था। इसके बाद एंडरसन को भादंवि की धारा 304-ए, 304, 25 हजार रुपए का मुचलका भरकर छोड़ दिया गया। धारा 304 गैरजमानती अपराध है और इसमें पुलिस को जमानत देने का अधिकार ही नहीं था। लेकिन एंडरसन को मुचलके पर छोड़ दिया गया।

कानून के अनुसार 304 में गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करना था। जहां मजिस्ट्रेट को ही आरोपी की जमानत पर सुनने का अधिकार था। परिवाद पत्र में कहा गया है कि एंडरसन को फरार करने में अर्जुन सिंह सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने के आदेश दिए जाए।

वहीं सोमवार को मामले में भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार और एडवोकेट शाहनवाज की ओर से अदालत में एक इस्तगासा पेश कर तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करने की अर्जी लगाई गई है।

Friday, June 11, 2010

राजस्थान में नालायक बच्चों से ले सकेंगे भरण पोषण भत्ता

बुजुर्ग मां—बाप अब अपने नालायक बच्चों से न केवल अपनी संपत्ति वापस छीन सकेंगे बल्कि 10,000 रुपए तक का भरण पोषण भत्ता भी ले सकेंगे। इसके लिए उन्हें अब कोर्टों में चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे, बल्कि एसडीएम या कलेक्टर के यहां अर्जी देकर ही न्याय ले सकेंगे। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में गुरुवार को हुई राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में यह फैसला किया गया। इसी के साथ बैठक में माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम के तहत नए नियमों को मंजूरी दे दी गई।

बैठक के बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने बताया कि इसका कानून तो केन्द्र सरकार ने 2007 में ही बना दिया था, लेकिन राज्य सरकारों को नियम बनाने के लिए कहा गया था। अब राजस्थान सरकार ने इसके नियम बना दिए हैं।


ऐसे मिलेगी बुजुर्ग मां बाप को राहत


* मां बाप को घर से निकालने पर तीन माह की सजा और 5000 रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान।
* संपत्ति का बच्चों में बंटवारा करने के बावजूद यदि बच्चे सेवा (मूलभूत सुविधाएं) नहीं करते हैं तो मां बाप अधिकरण में जाकर बंटवारा (संपत्ति हस्तांतरण) को शून्य घोषित करवा सकते हैं।
* इसके लिए प्रत्येक उपखंड में भरण पोषण अधिकरण का गठन होगा। एसडीएम इसका पीठासीन अधिकारी होगा।
* प्रत्येक जिले में एक अपीलीय अधिकरण बनाया जाएगा। जिला मजिस्ट्रेट इसमें पीठासीन अधिकारी होगा।
* प्रत्येक जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम होगा
* बच्चों ने अगर माता पिता का सही भरण पोषण नहीं किया तो अधिकरण मां बाप को अधिकतम 10,000 रुपए तक का भत्ता दिलवा सकेगा।
* अधिकरण में वकीलों को पैरवी करने का अधिकार नहीं होगा। दोनों पक्षों को खुद ही पेश होना होगा।
* अधिकरण के फैसलों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

अब तलाक के लिए 9 झूठ बोलने की जरूरत नहीं

विवाह सफल नहीं साबित होने पर तलाक लेना अब और आसान होगा। सरकार ने विवाह से जुड़े दो महत्वपूर्ण कानूनों में संशोधन के प्रस्ताव को गुरुवार को मंजूरी दे दी।

किसी एक पक्ष के अदालत में पेश नहीं होने और जानबूझ कर मुकदमे की कार्यवाही लंबा खींचने के मद्देनजर परस्पर सहमति से तलाक की अर्जी देने वाले पति या पत्नी का उत्पीड़न रोकने के उद्देश्य से हिन्दू विवाह कानून में संशोधन का फैसला किया गया है।

प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में तय किया गया कि हिन्दू विवाह कानून, 1955 में संशोधन के लिए विधेयक संसद में पेश किया जाएगा।

बैठक के बाद सूचना प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने स्पष्ट किया कि यह विधेयक उन पक्षों को सुरक्षा प्रदान करेगा, जो सहमति से तलाक की अर्जी देते हैं लेकिन किसी एक पक्ष के अनुपस्थित होने या जान बूझ कर अदालत की कार्यवाही में शामिल नहीं होने के कारण उत्पीड़न का शिकार होते हैं।

अंबिका ने बताया कि सरकार ने विशेष विवाह कानून, 1954 में भी संशोधन के प्रस्ताव को मंजूरी दी है।

उन्होंने बताया कि अकसर ऐसा पाया जाता है कि परस्पर सहमति से तलाक की अर्जी देने वाले पति या पत्नी अदालत की कार्यवाही से अनुपस्थित रहते हैं। ऐसे में किसी एक पक्ष का उत्पीड़न होता है और अदालती कार्यवाही का नतीजा भी नहीं निकल पाता है।

कानून में ऐसे संशोधन की पहल से अदालतों में लंबित तलाक के मुकदमों का चेहरा बदल जाएगा।  हालांकि, ऐसे रिश्तों से छुटकारा पाने की जरूरत 32 साल पहले ही महसूस कर ली गई थी। 1978 में विधि आयोग की 71वीं रिपोर्ट में ही हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 में संशोधन करने की सिफारिश कर दी गई थी लेकिन उसे कानूनी जामा पहनाने की पहल में तीन दशक से ज्यादा का समय बीत गया। इस बीच सुप्रीमकोर्ट के कई फैसलों और गत वर्ष विधि आयोग की 217वीं रिपोर्ट में फिर इसे तलाक का 10वां आधार बनाए जाने की सिफारिश हुई। इससे अदालतों में लंबित तलाक के मुकदमे जल्दी निपटेंगे। पक्षकारों को कानून में मौजूद तलाक के 9 आधारों के झूठे बहाने नहीं ढूंढ़ने पड़ेंगे। उन्हें सिर्फ सिद्ध करना होगा कि वे वर्षों से अपने साथी से अलग रह रहे हैं और उनका एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है। अब दोबारा साथ रहना मुमकिन नहीं है।

विवाह कानून [संशोधन] विधेयक, 2010 में हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 व विशेष विवाह अधिनियम, 1954 में उपरोक्त संशोधन का प्रस्ताव रखा गया है। अभी तक वर्षों से अलग अलग रहना और संबंध के दोबारा न जुड़ सकने की संभावना तलाक का आधार नहीं थे और इसलिए देश में हजारों जोड़े वस्तुत: अलग रहते हुए अपने वैवाहिक संबंधों को ढोने को मजबूर थे। सरकार ने कानून में संशोधन का जो प्रस्ताव पेश किया है उसमें हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13-बी व विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28 के तहत अगर पति पत्नी आपसी सहमति से तलाक की अर्जी देते हैं और अर्जी देने के बाद एक पक्ष जानबूझ कर अदालती कार्यवाही से बचता है और पेश नहीं होता तो अदालत उस अर्जी पर तलाक दे सकती है। इस संशोधन से एक पक्ष दूसरे पक्ष को बेवजह प्रताड़ित नहीं कर पाएगा।

तलाक के 9 आधार -व्यभिचार

-क्रूरता

-परित्याग

-धर्म परिवर्तन

-पागल

-कुष्ठ रोग

-छूत की बीमारी वाले यौन रोग

-संन्यास

-सात साल से जीवित होने की खबर न हो

विधि आयोग की सिफारिशें

अप्रैल, 1978 विधि आयोग की 71वीं रिपोर्ट में कहा गया कि इरिट्रिवेएबल ब्रेकडाउन आफ मैरिज यानी शादी के टूट चुके रिश्ते के दोबारा जुड़ने की संभावना न होना भी तलाक का एक आधार माना जाए। कानून में संशोधन कर हिन्दू मैरिज एक्ट में धारा 13 सी जोड़ने की सिफारिश की गई।

मार्च 2009 विधि आयोग की 217वीं रिपोर्ट में भी इरिट्रिवेएबल ब्रेकडाउन आफ मैरिज को तलाक का आधार बनाए जाने की सिफारिश की गई।

सुप्रीमकोर्ट के फैसले जिनमें तलाक का यह आधार जोड़े जाने की दी गई सलाह

-जार्डन डाइंगडेह बनाम एसएस चोपड़ा

-नवीन कोहली बनाम नीलू कोहली

-समर घोष बनाम जया घोष

Thursday, June 10, 2010

आरोपी भी बन सकता है जज!

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट या जज के पद के लिए चुने गए किसी उम्मीदवार को महज इस आधार पर नियुक्ति से वंचित नहीं रखा जा सकता कि वह अभियोजन का सामना कर रहा है।

जस्टिस एस. ए. बोबडे और पी. डी. कोडे की खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा कोई नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता कि अगर कोई महज अभियोजन का सामना कर रहा है, तो उसे नियुक्ति नहीं दी जाए। क्योंकि, असल में यह हो सकता है कि उम्मीदवार किसी तुच्छ मामले में अभियोजन का सामना कर रहा हो।

बुल्दाना के वकील और नाराज उम्मीदवार की याचिका पर पीठ ने कहा कि सरकार के लिए इस तरह के उम्मीदवार को नियुक्ति देने का विकल्प खुला रहेगा। सरकार ने याचिकाकर्ता को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्ति देने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि वह भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दहेज के लिए क्रूरता करने और प्रताड़ित करने के आरोप में अभियोजन का सामना कर रहा है।

अदालत ने कहा कि सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत अभियोजन का सामना कर रहे उम्मीदवार के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट पद पर चयन का कारण मजबूत है और क्या चयन समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के पीछे का कारण अकाट्य हैं।

भोपाल गैस त्रासदी मामले में आठ दोषियों दो-दो साल की सजा, अदालत के फैसले पर भोपाल में रोष

26 साल बाद आया भोपाल गैस कांड में फैसला. 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत के जिम्मेदार ठहराए गए आठ दोषियों दो-दो साल की सजा सुनाई गई. सजा के फौरन बाद दोषियों को 25 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत भी दे दी गई.

23 साल तक चली सुनवाई, 178 लोगों की गवाही और तीन हज़ार से ज्यादा पन्नों के दस्तावेजों से गुजरने के बाद स्थानीय अदालत ने यह फैसला सुनाया.  गैस त्राषदी के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले नौ आरोपियों में से एक की तो मौत भी हो चुकी है, लिहाजा बाकी के आठ को दोषी करार दिया गया. एक एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ दो-दो साल की सजा सुनाई गई.

दोषियों में  यूनियन कारबाइड इंडिया के तत्कालीन निदेशक केशब महेंद्रा समेत विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केवी शेट्टी और एसआई कुरैशी शामिल हैं.  अदालत ने माना कि इन लोगों की लापरवाही के चलते ही गैस कांड जैसा विनाशकारी हादसा हुआ.  अभियोजन पक्ष का कहना है कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट के डिजायन में भारी कमियां थीं, दुर्घटना इसी के चलते हुई. हादसे से दो साल पहले अमेरिकी विशेषज्ञों की एक टीम ने सुरक्षा संबंधी कई कमियां बताई थीं लेकिन उन यूनियन कारबाइड की फैक्टरी
पर ध्यान नहीं दिया गया. यूनियन कारबाइड की फैक्टरी

लापरवाही और अनदेखी की वजह दो दिसबंर 1984 की रात भोपाल गैस हादसा हुआ. यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड के खाद बनाने वाले कारखाने से रात में 40 मीट्रिक टन जहरीली गैस रिसी. टॉक्सिक मेथाइल आइसोसाइनट नाम की इस गैस ने रातों रात हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया. हादसे की चपेट में आए एक लाख से ज्यादा लोग आज भी कई तरह की बीमारियों से लड़ रहे हैं.

सरकार कहती है कि हादसे में 3,500 लोगों की मौत हुई जबकि राहत और बचावकर्मियों के मुताबिक गैस कांड में 25 हजार जानें गईं. कई पीड़ित आज भी मानवाधिकार संगठनों के साथ मिलकर राजधानी नई दिल्ली में टैंट तंबू गाड़कर इंसाफ की मांग कर रहे हैं. पीड़ितों का कहना है कि अदालत के फैसले ने राहत के बजाए जख्म हरे करने का काम किया है.

अदालत के फैसले पर भोपाल में रोष

हजारों लोगों की जान लेने वाले भोपाल गैस त्रासदी मामले में कोर्ट के फैसले को लेकर आज भी भोपाल के लोगों में भारी रोष व्याप्त है। लोगों का मानना है कि इस घटना के लिए अदालत ने दोषियों को बहुत ही कम सजा सुनाई है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा कि हादसे की चपेट में आए लोगों को अपने जीवन में एक नहीं, बल्कि दो त्रासदियों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि पहली त्रासदी उस वक्त हुई जब दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसो सायनेट [एमआईसी] गैस रिसी थी और दूसरी त्रासदी कल उस वक्त हुई, जब उस पर अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

उल्लेखनीय है कि कल आए फैसले में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया है, लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। त्रासदी से पीड़ित शमशाद बी ने कहा कि यह बहुत ही दुख की बात है कि इतने बड़े हादसे के बाद भी जिम्मेदार लोगों को जमानत पर छोड़ दिया गया और उन्हें जेल में एक रात भी नहीं बितानी पड़ी।

इस मामले में लोगों में इस बात को लेकर भी काफी नाराजगी है कि कल अदालत में दोषी लोगों को आराम से अंदर जाने दिया गया, लेकिन गैस पीड़ितों की संस्थाओं के नुमाइंदों को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। इससे अदालत के बाहर खड़े उन लोगों की पुलिस से कई बार तू-तू-मैं-मैं भी हुई।
 अदालत परिसर में जाने की अनुमति न मिलने से गुस्साए गैस पीड़ित कोर्ट के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और तरह-तरह के नारे भी लगा रहे थे।

उनका कहना है कि अदालत के कल के फैसले का मतलब यह नहीं है कि गैस पीड़ितों के कानूनी दुखों का अंत हो गया है। अब यह मामला सत्र न्यायालय जाएगा, वहां से उस पर उच्च न्यायालय में बहस होगी और अंतिम फैसला उच्चतम न्यायालय में आएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा संभव है कि इन अदालतों में मामले की सुनवाई के लिए 25 साल न लगे, पर अभी भी कोई यह नहीं कह सकता है कि यहां पर कार्रवाई कबतक चलेगी।

Thursday, June 3, 2010

वकील बनने के लिए देनी होगी परीक्षा

वकालत करने के इच्छुक कानून स्नातकों को अब इस साल से बार काउन्सिल ऑफ इंडिया द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षा से गुजरना होगा।
यह परीक्षा इस साल 5 दिसम्बर को आयोजित की जाएगी। परीक्षा साल में दो बार आयोजित की जाएगी।

साल 2011 से यह परीक्षा अप्रेल और नवम्बर में आयोजित की जाएगी। बार काउन्सिल ऑफ इंडिया के साल 2010-12 का दृष्टि पत्र जारी करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में इस आशय की घोषणा की गई। इस परीक्षा का आयोजन बार काउन्सिल ऑफ इंडिया की निगरानी में विधि शिक्षा विभाग और रेनमेकर मिलकर करेंगे।

परीक्षा में शामिल होने के इच्छुक उम्मीदवारों को पहले अधिवक्ता अधिनियम,1961 की धारा 24 के तहत अपना नामांकन कराना होगा और तब उन्हें नामांकन के प्रमाण के साथ-साथ आवेदन पत्र को अखिल भारतीय बार परीक्षा के लिए जमा करना होगा। इस परीक्षा के जरिए वकालत करने के इच्छुक उम्मीदवारों की बुनियादी योग्यता का परीक्षण किया जाएगा।

क्या होगा परीक्षा में

इस परीक्षा में कौन-कौन से विषय होंगे इसके बारे में चंद्रा ने बताया कि इसमें वही विषय होंगे जिन्हें बार-बार काउन्सिल ने तीन वर्षीय और पांच वर्षीय विधि स्नातक पाठ्यक्रम के लिए निर्घारित कर रखा है। उन्होंने बताया कि पहले खंड में आधारभूत विषय होंगे जबकि दूसरे खंड में वैसे विषय होंगे जिनकी समझ वकालत के पेशे में नए-नए आ रहे उम्मीदवारों के लिए रखनी जरूरी है।

जातीय हिंसा के पीड़ित दलितों को मकान बना कर दे हरियाणा सरकार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि हिसार जिले के मिर्चपुर गांव के जातीय हिंसा के पीड़ितों की सुरक्षा हरियाणा सरकार का कर्तव्य है।

न्यायमूर्ति जी. एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति सी. के. प्रसाद की सदस्यता वाली सर्वोच्चा न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि दलितों को सुरक्षा मुहैया कराने में विफलता गंभीरता से ली जाएगी। न्यायालय ने सरकार को दलितों के उन 18 मकानों का भी पुनर्निर्माण कराने का आदेश दिया जिन्हें 21 अप्रैल को कथित तौर पर जाट समुदाय के लोगों ने जला दिया था। न्यायालय ने कहा कि पीड़ित परिवार के एक-एक सदस्य को महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत या फिर राज्य सरकार की ऎसी ही किसी योजना के तहत रोजगार दिलाया जाय। चण्डीगढ़ से करीब 300 किलोमीटर दूर हिसार के एक गांव से 21 अप्रैल को 150 दलितों को गांवों से खदे़ड दिया गया था और उनके मकानों में आग लगा दी गई थी। इस हमले में 70 साल के एक बुजुर्ग और उनकी 18 वर्षीया विकलांग पोती की मौत हो गई थी और कम से कम 18 मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे।

Wednesday, June 2, 2010

वकील हड़ताल खत्म नहीं करेंगे, तो कैदी भूख हड़ताल करेंगे!

 राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में पिछले करीब दो महीनों से भी अधिक समय से चल रही वकीलों की हड़ताल से परेशान विचाराधीन कैदियों ने भूख हड़ताल की चेतावनी दी है।

सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जिला कारागार के मादक पदार्थ मामलों में विचाराधीन करीब दो दर्जन कैदियों ने कल हनुमानगढ़ में एक न्यायिक अधिकारी को लिखे पत्र में अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि वकीलों की हड़ताल की वजह से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

उनकी हड़ताल के कारण अदालतों में उनके प्रकरणों पर जिरह नहीं हो पा रही है। उन्होंने हड़ताल समाप्त नहीं होने पर तीन जून से कारागार में भूख हड़ताल की चेतावनी दी है। उधर हनुमानगढ़ बार संघ के अध्यक्ष विनोद पारीक ने कैदियों की मांग को जायज बताते हुए कहा कि जल्द से जल्द हड़ताल समाप्त करने के प्रयास किए जाएंगे।

उल्लेखनीय है कि हनुमानगढ़ के वकील गत 23 मार्च से कुछ भूखंडों को फर्जी रजिस्ट्री करके बेचने के मुख्य आरोपियों को गिरफ्तार करने की मांग को लेकर हड़ताल पर हैं।

वकीलों की प्रैक्टिस मामले में सुनवाई से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बाहर के वकीलों के उत्तर प्रदेश की अदालतों में पै्रक्टिस पर रोक लगाने के मामले में सुनवाई से इनकार कर दिया। उत्तर प्रदेश बार काउंसिल ने गत 18 अप्रैल को प्रस्ताव पारित कर सभी जिला जजों व उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि अन्य प्रदेशों की बार काउंसिल में पंजीकृत वकीलों को राज्य की अदालतों में प्रैक्टिस की अनुमति न दी जाए।

इसी रोक प्रस्ताव के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट में रिट याचिका दाखिल हुई थी। मंगलवार को न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी व न्यायमूर्ति सीके प्रसाद की पीठ ने दिल्ली के वकील संजय त्यागी की इस याचिका पर विचार करने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पहले यह मामला हाईकोर्ट के सामने रखा जाना चाहिए। इससे पहले त्यागी की पैरवी कर रहे वकील डीके गर्ग ने यूपी बार काउंसिल के प्रस्ताव को निरस्त करने की प्रार्थना की थी। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के बाद ही गत 15 मई को गाजियाबाद की जिला अदालत ने दिल्ली में पंजीकृत वकील संजय त्यागी को बहस करने से रोक दिया था। उन्होंने उस आदेश को भी निरस्त करने की मांग की। उन्होंने कहा कि प्रैक्टिस पर रोक लगाने से उन्हें संविधान में प्राप्त रोजगार के अधिकार का हनन होता है। उनकी दलीलों पर कोर्ट ने कहा कि मामला तो ठीक है। लेकिन इसे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट या इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के सामने रखा जाना चाहिए।

याचिका में यह भी मांग की गई थी कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि वह एडवोकेट एक्ट की धारा 30 को अधिसूचित करे जिसके मुताबिक किसी भी बार काउंसिल में पंजीकृत वकील को देश की किसी भी अदालत में वकालत करने का अधिकार है। यह प्रावधान आजतक लागू नहीं हुआ है क्योंकि केंद्र सरकार ने इस बावत अधिसूचना ही जारी नहीं की है। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 1988 में एक मामले में सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर विचार करने को कहा था लेकिन फिर भी सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। याचिकाकर्ता का कहना था कि राज्य बार काउंसिल को रोक लगाने का प्रस्ताव पारित करने का अधिकार नहीं है।

अक्षरधाम हमले में अपराधियों को मिली फासी की सजा के फैसले को हाईकोर्ट ने बरक़रार रखा |

24 सितबंर 2002 के दिने गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मंदिर में हुए आतंकी हमले में अरोपियो को मिली फासी की सजा| इस हमले में 33 लोग मारे गए थे जबकि 76 जख्मी हुए थे|
मंगलवार को गुजरात हाईकोर्ट ने अपने फैसले में आरोपियों को फासी को सजा सुनते हुए निचली अदालत के फैसले को बरक़रार रखा है |
ज्ञात हो 24 सितबंर 2002 के दिने गांधीनगर स्थित अक्षरधाम मंदिर में जब लोग दर्शन के लिए खड़े थे तब 5 बन्दूक धारियों ने मंदिर में घुस कर गोलियाँ चलानी शुरू कर दी थी जिसमें 33 लोग मारे गए थे जबकि 76 लोग घायल। कई घंटों तक चले इस मुठभेड़ में एनएसजी और गुजरात पुलिस का एक कमांडो भी मारा गया था जबकि कुछ कमांडो भी घायल हुए थे। आतंकवादियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच पूरी रात मुठभेड़ चली, जिसमें दो चरमपंथी भी मारे गए थे। यह हमला चरपंथी संगठन जैस-ए-मोहम्मद के इशारे पर किया गया था।
इस हमले के अभियुक्तों को विशेष पोटा जज सोनिया गोकाणी की अदालत ने 2006 में इस मामले में तीन आरोपियों को फांसी, एक को उम्रकैद, एक को 10 साल की सजा और एक को पांच साल की सजा सुनाई थी। निचली अदालत के इस फैसले को अभियुक्तों ने गुजरात हाई कोर्ट के चुनौती दी थी जिस पर आज सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने आरोपियों की फासी की सजा सुनते हुए निचली अदालत के फैसले को बरक़रार रखा है |
ज्ञात हो हमलावर आतंकियों को ठिकाने लगाने के लिए एनएसजी के विशेष दस्ते को गांधीनगर आकर ऑपरेशन करना प़डा था। इस ऑपरेशन में एक कमांडो भी मारा गया था जबकि कुछ कमांडो भी घायल हुए थे जबकि दो चरमपंथी भी मारे गए थे।

भ्रष्टाचार के लिए बर्खास्‍तगी एकमात्र सजा: सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि भ्रष्टाचार और सार्वजनिक राशि की गड़बड़ी में लिप्त सरकारी कर्मचारियों के लिए बर्खास्‍तगी एकमात्र सजा है भले ही वह राशि काफी कम क्यों न हो.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सजा अपराध के अनुपात में होनी चाहिए लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में सरकारी कर्मचारियों के लिए बर्खास्‍तगी एकमात्र सजा है. न्यायमूर्ति बी एस चौहान और न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की एक पीठ ने अपने फैसले में यह टिप्पणी की.

इसके साथ ही पीठ ने कर्मचारी के वकील जे एन दूबे की दलीलों को अस्वीकार कर दिया. पीठ ने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के बस कंडक्टर सुरेश चंद्र शर्मा की बर्खास्‍तगी को बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की. शर्मा को विभागीय जांच के बाद सेवा से बर्खास्‍त कर दिया गया था. जांच में उसे करीब 25 यात्रियों से पैसे लेने और उस राशि को सरकारी खजाने में जमा नहीं कराने का दोषी ठहराया गया था.

न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में किसी सहानुभूति की जरूरत नहीं है और ऐसा करना जनहित के खिलाफ है. गड़बड़ी की जाने वाली राशि भले ही काफी कम हो लेकिन इसमें महत्वपूर्ण बात गड़बड़ी की कार्रवाई है जो प्रासंगिक है.

सम्पूर्ण निर्णय

आयुसीमा पार अभ्यर्थियों को परीक्षा में शामिल करने के आदेश

राजस्थान हाईकोर्ट ने अधिकतम आयु सीमा पार कर चुके अभ्यार्थियों को अंतरिम रूप से अपर जिला न्यायाधीश की लिखित परीक्षा में शामिल करने के आदेश देते हुए न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल एवं विधि सचिव से जवाब तलब किया है।

न्यायाधीश प्रेमशंकर आसोपा एवं एन के जैन ने जुगलकिशोर एवं अन्य की याचिका पर आज यह आदेश दिया। अधिवक्ता राजेन्द्र प्रसाद ने न्यायालय को बताया कि उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीशों के रिक्त पद विज्ञापित किए।

उसमें उपरी आयु सीमा में छूट को विज्ञापित नहीं किया जबकि एडीजे भर्ती संबंधी नियमों में यह प्रावधान है कि जिस साल इस पद की भर्ती परीक्षा नहीं होगी और उस साल कोई अभ्यार्थी आयु सीमा में हो तो उसे जब भी भर्ती परीक्षा होगी, ऊपरी आयुसीमा में छूट दी जाएगी।

इस आधार पर कई अभ्यार्थियों ने आवेदन कर दिया था लेकिन उच्च न्यायालय ने 245 अभ्यार्थियों के आवेदन पत्र खारिज कर दिए। इस आदेश को न्यायालय में यह कहते हुए चुनौती दी गई कि एडीजे भर्ती परीक्षा नियम 33 के तहत वे योग्य है और उनका प्रार्थना पत्र गलत तरीके से रद्द किया गया है।

वैद्य विशारद व आयुर्वेद रत्न नहीं कर पाएंगे इलाज

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी कि हिन्दी साहित्य सम्मेलन - प्रयाग से जिन वैद्यों ने 1967 के बाद वैद्य विशारद अथवा आयुर्वेद रत्न की डिग्री प्राप्त की है वह डिग्री मान्य नहीं होगी और वे चिकित्सा नहीं कर सकेंगे। 1967 तक की डिग्री ही मान्य होगी और वे प्रेक्टिस करने के अधिकारी होगे।

इण्डियन मेडिकल कन्ट्रोल एक्ट -1970 में 1967 तक की डिग्रियां ही मानी गई है। यद्यपि इसे 1976 में लागू किया गया था । विवाद यह था कि 1967 तक की डिग्रियों को ही मान्यता दी जाए अथवा 1976 तक जब से इसे लागू किया गया था।

न्यायाधीश वी एस चौहान और स्वतन्त्र कुमार की खण्डपीठ ने आयुर्वेद विकास चिकित्सा संघ व अन्य की अपीलें खारिज करते हुए कहा कि 1967 तक की ही डिग्रियां मान्य होगी। इसके अलावा खण्डपीठ ने सेन्ट्रल कांउसिल आफ इण्डियन मेडिसिन की अपील को स्वीकार कर लिया। एक उच्च न्यायालय ने 1976 तक की डिग्रियों को मान्य बताया था।
सम्पूर्ण निर्णय

वकीलों को जज बनाने के लिए प्रस्तावित 5 नामों की समीक्षा हो -सुप्रीम कोर्ट कॉलेयिम

सुप्रीम कोर्ट कॉलेयिम ने दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायिक नियुक्ति समिति को पांच वकीलों के बतौर न्यायाधीश नियुक्त किए जाने की अपनी हालिया सिफारिश की समीक्षा करने को कहा है। नियुक्ति समिति ने उच्च न्यायालय में वकालत कर रहे पांच अधिवक्ताओं को इसी न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त किये जाने की सिफारिश की है।

विधि मंत्रालय में उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एस एच कपाडिया की अध्यक्षता वाले पांच सदस्यीय कॉलेजियम ने उच्च न्यायालय की नियुक्ति समिति के प्रस्ताव में कुछ स्वाभाविक समस्या की ओर इशारा किया है। सूत्रों के अनुसार कॉलेजियम ने इस बात को लेकर ऎतराज जताया है कि यह सिफारिश उच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ए पी शाह ने अपनी सेवानिवृत्ति से कुछ दिनों पहले ही की थी।

न्यायाधीश कपाडिया चाहते हैं कि यह सिफारिश उच्च न्यायालय के नवनियुक्त मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा करें। बतौर न्यायाधीश नियुक्ति के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन से जुडे जिन पांच वकीलों के नामों की सिफारिश की गई है उनमें अभिनव वशिष्ट, राजीव वीरमणि, अनुसूइया सालवान, मीनाक्षी अरोडा और मनिन्दर आचार्य शामिल हैं।

चीन में तीन न्यायाधीशों की हत्या के बाद खुदकुशी की

चीन की एक अदालत में मंगलवार को एक व्यक्ति ने छह न्यायाधीशों को गोली मार दी, जिनमें तीन की मौत हो गई। इसके बाद उसने आत्महत्या कर ली।

मध्य चीन में मशीनगन से लैस बैंक के एक सुरक्षाकर्मी ने मंगलवार को एक अदालत में घुसकर अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें तीन न्यायाधीश मारे गए और तीन अन्य घायल हो गए। इसके बाद हमलावर ने खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने स्थानीय अधिकारियों के हवाले से बताया कि मध्य प्रांत हुनान में योगजुआ शहर के एक जिला अदालत में स्थानीय समयानुसार दिन में 10.05 बजे सुनवाई के दौरान यह घटना हुई।

पुलिस ने बताया कि 46 वर्षीय झू जून ने अदालत में न्यायाधीशों को गोली मारने के बाद खुदकुशी कर ली।

प्रारंभिक जांच में पता चला है कि झू का एक बेटा है। तीन साल पहले उसका पत्नी के साथ तलाक हो गया था और और वह अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसने अदालत में बदला लेने की मंशा से ये अपराध किए। झू के परिजनों का कहना है कि तलाक के दौरान संपत्ति बंटवारे में न्यायालय ने उसके साथ अन्याय किए थे।

पुलिस ने बताया कि मारे गए न्यायाधीश झू के तलाक मामले में शामिल नहीं थे।

न्यायमूर्ति बालाकृष्णन मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष नियुक्त

उच्चतम न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार पिछले महीने की 12 तारीख मुख्य को मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति बालाकृष्णन का आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल पांच वर्ष का रहेगा।

उच्चतम न्यायालय के पहले दलित मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति बालाकृष्णन मानवाधिकार आयोग के भी पहले दलित अध्यक्ष हैं। आयोग के अध्यक्ष का पद पिछले एक वर्ष से रिक्त था।