पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, June 10, 2010

भोपाल गैस त्रासदी मामले में आठ दोषियों दो-दो साल की सजा, अदालत के फैसले पर भोपाल में रोष

26 साल बाद आया भोपाल गैस कांड में फैसला. 20 हजार से ज्यादा लोगों की मौत के जिम्मेदार ठहराए गए आठ दोषियों दो-दो साल की सजा सुनाई गई. सजा के फौरन बाद दोषियों को 25 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत भी दे दी गई.

23 साल तक चली सुनवाई, 178 लोगों की गवाही और तीन हज़ार से ज्यादा पन्नों के दस्तावेजों से गुजरने के बाद स्थानीय अदालत ने यह फैसला सुनाया.  गैस त्राषदी के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले नौ आरोपियों में से एक की तो मौत भी हो चुकी है, लिहाजा बाकी के आठ को दोषी करार दिया गया. एक एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ दो-दो साल की सजा सुनाई गई.

दोषियों में  यूनियन कारबाइड इंडिया के तत्कालीन निदेशक केशब महेंद्रा समेत विजय गोखले, किशोर कामदार, जे मुकुंद, एसपी चौधरी, केवी शेट्टी और एसआई कुरैशी शामिल हैं.  अदालत ने माना कि इन लोगों की लापरवाही के चलते ही गैस कांड जैसा विनाशकारी हादसा हुआ.  अभियोजन पक्ष का कहना है कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के प्लांट के डिजायन में भारी कमियां थीं, दुर्घटना इसी के चलते हुई. हादसे से दो साल पहले अमेरिकी विशेषज्ञों की एक टीम ने सुरक्षा संबंधी कई कमियां बताई थीं लेकिन उन यूनियन कारबाइड की फैक्टरी
पर ध्यान नहीं दिया गया. यूनियन कारबाइड की फैक्टरी

लापरवाही और अनदेखी की वजह दो दिसबंर 1984 की रात भोपाल गैस हादसा हुआ. यूनियन कारबाइड इंडिया लिमिटेड के खाद बनाने वाले कारखाने से रात में 40 मीट्रिक टन जहरीली गैस रिसी. टॉक्सिक मेथाइल आइसोसाइनट नाम की इस गैस ने रातों रात हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया. हादसे की चपेट में आए एक लाख से ज्यादा लोग आज भी कई तरह की बीमारियों से लड़ रहे हैं.

सरकार कहती है कि हादसे में 3,500 लोगों की मौत हुई जबकि राहत और बचावकर्मियों के मुताबिक गैस कांड में 25 हजार जानें गईं. कई पीड़ित आज भी मानवाधिकार संगठनों के साथ मिलकर राजधानी नई दिल्ली में टैंट तंबू गाड़कर इंसाफ की मांग कर रहे हैं. पीड़ितों का कहना है कि अदालत के फैसले ने राहत के बजाए जख्म हरे करने का काम किया है.

अदालत के फैसले पर भोपाल में रोष

हजारों लोगों की जान लेने वाले भोपाल गैस त्रासदी मामले में कोर्ट के फैसले को लेकर आज भी भोपाल के लोगों में भारी रोष व्याप्त है। लोगों का मानना है कि इस घटना के लिए अदालत ने दोषियों को बहुत ही कम सजा सुनाई है।

भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने कहा कि हादसे की चपेट में आए लोगों को अपने जीवन में एक नहीं, बल्कि दो त्रासदियों का सामना करना पड़ा है। उन्होंने कहा कि पहली त्रासदी उस वक्त हुई जब दिसंबर 1984 में यूनियन कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसो सायनेट [एमआईसी] गैस रिसी थी और दूसरी त्रासदी कल उस वक्त हुई, जब उस पर अदालत ने अपना फैसला सुनाया।

उल्लेखनीय है कि कल आए फैसले में मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया है, लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया। त्रासदी से पीड़ित शमशाद बी ने कहा कि यह बहुत ही दुख की बात है कि इतने बड़े हादसे के बाद भी जिम्मेदार लोगों को जमानत पर छोड़ दिया गया और उन्हें जेल में एक रात भी नहीं बितानी पड़ी।

इस मामले में लोगों में इस बात को लेकर भी काफी नाराजगी है कि कल अदालत में दोषी लोगों को आराम से अंदर जाने दिया गया, लेकिन गैस पीड़ितों की संस्थाओं के नुमाइंदों को अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। इससे अदालत के बाहर खड़े उन लोगों की पुलिस से कई बार तू-तू-मैं-मैं भी हुई।
 अदालत परिसर में जाने की अनुमति न मिलने से गुस्साए गैस पीड़ित कोर्ट के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे और तरह-तरह के नारे भी लगा रहे थे।

उनका कहना है कि अदालत के कल के फैसले का मतलब यह नहीं है कि गैस पीड़ितों के कानूनी दुखों का अंत हो गया है। अब यह मामला सत्र न्यायालय जाएगा, वहां से उस पर उच्च न्यायालय में बहस होगी और अंतिम फैसला उच्चतम न्यायालय में आएगा। उन्होंने कहा कि ऐसा संभव है कि इन अदालतों में मामले की सुनवाई के लिए 25 साल न लगे, पर अभी भी कोई यह नहीं कह सकता है कि यहां पर कार्रवाई कबतक चलेगी।

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