पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Thursday, June 10, 2010

आरोपी भी बन सकता है जज!

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट या जज के पद के लिए चुने गए किसी उम्मीदवार को महज इस आधार पर नियुक्ति से वंचित नहीं रखा जा सकता कि वह अभियोजन का सामना कर रहा है।

जस्टिस एस. ए. बोबडे और पी. डी. कोडे की खंडपीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसा कोई नियम निर्धारित नहीं किया जा सकता कि अगर कोई महज अभियोजन का सामना कर रहा है, तो उसे नियुक्ति नहीं दी जाए। क्योंकि, असल में यह हो सकता है कि उम्मीदवार किसी तुच्छ मामले में अभियोजन का सामना कर रहा हो।

बुल्दाना के वकील और नाराज उम्मीदवार की याचिका पर पीठ ने कहा कि सरकार के लिए इस तरह के उम्मीदवार को नियुक्ति देने का विकल्प खुला रहेगा। सरकार ने याचिकाकर्ता को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट पद पर नियुक्ति देने से इस आधार पर इनकार कर दिया था कि वह भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत दहेज के लिए क्रूरता करने और प्रताड़ित करने के आरोप में अभियोजन का सामना कर रहा है।

अदालत ने कहा कि सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत अभियोजन का सामना कर रहे उम्मीदवार के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट पद पर चयन का कारण मजबूत है और क्या चयन समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने के पीछे का कारण अकाट्य हैं।

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