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Tuesday, June 15, 2010

सगोत्र विवाह मसले पर उच्च न्यायालय जाए -सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को समान गोत्र में विवाह के मुद्दे पर जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा। याचिकाकर्ता ने न्यायालय से केंद्र सरकार को समान गोत्र में होने वाली शादियों को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत निषिध्द मानने का निर्देश देने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति दीपक वर्मा और न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के वकील के. टी. एस. तुलसी से कहा कि इस संबंध में जनहित याचिका दायर करने वाले नरेश कादयान को इस मामले में उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा जाए।

याचिका में कहा गया है कि समान गोत्र में किए जाने वाले विवाहों को अमान्य घोषित करने के लिए कानून में संशोधन करने का निर्देश दिया जाए।

याचिका में कहा गया है कि चिकित्सा विज्ञान में साबित किया गया है कि करीबी संबंधियों का विवाह होने से आनुवांशिक बीमारियां पैदा होती हैं। इस तरह के विवाह को अनुमति देने से समाज का विनाश होता है।

याचिका में कहा गया कि हिन्दू रीति-रिवाजों के मुताबिक समान गोत्र में विवाह मान्य नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा कि कई जातियों में माता, पिता, नानी और दादी के गोत्र वाले लड़के या लड़की से विवाह नहीं किया जाता है।

याचिका में उत्तर भारत के विभिन्न राज्यों में सभी जातियों के हिन्दुओं के लिए समान गोत्र में विवाह के मुद्दे पर निर्णय करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्ष में एक आयोग बनाए जाने की मांग भी की गई।

याचिकाकर्ता ने कहा कि समान गोत्र में विवाह के मामलों से धर्म की आजादी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है।

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