पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Friday, July 30, 2010

शव की बरामदगी के बगैर भी सजा संभव : सुप्रीम कोर्ट

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि मृत व्यक्ति का शव बरामद नहीं होने पर भी हत्या के लिए किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जा सकता है.   

न्यायमूर्ति आरएम लोढा और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने एक फ़ैसले में कहा कि कभी-कभी अपराध के तथ्यों के सबूत और इसे करने वाले के सबूत के बीच भेद नहीं किया जा सकता.    

पीठ ने कहा कि कॉर्पस डेलिक्टी (शव का सबूत) और अपराध के लिए आरोपित व्यक्ति का गुनाह इस कदर एक-दूसरे से जुडा होता है कि एक को दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता. वही साक्ष्य अक्सर अपराध के तथ्यों और जिस व्यक्ित ने उसे किया उसके व्यक्ितत्व दोनों पर लागू किया जाता है.    

शीर्ष अदालत ने यह फ़ैसला दोषी पृथी की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए सुनाया. उसने हरियाणा में तीन अक्तूबर 1990 को हुई अमी लाल की हत्या के मामले में सत्र अदालत की ओर से सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को चुनौती दी थी. बाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने सजा को बरकरार रखा था.

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