पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Monday, August 2, 2010

विशेषज्ञों की समिति द्वारा किए गए फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करें अदालतें -उच्चतम न्यायालय

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि अदालतों को विशेषज्ञों की समिति द्वारा शिक्षा क्षेत्र तथा उम्मीदवारों के चयन के बारे में किए गए फैसलों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक प्रक्रिया में किसी विशेषज्ञ  की गलत मंशा होने की बात साबित नहीं हो जाए।

न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति टी. एस ठाकुर की पीठ ने अपने फैसले में कहा, अदालतों की भूमिका तब काफी सीमित होती है जब चयन समिति के विशेष्ाज्ञों के खिलाफ बदनीयत रखने का आरोप नहीं हो। इस तरह के फैसलों को शिक्षाविद और विशेषज्ञों पर ही छोड़ देना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के एक फैसले को निरस्त करते हुए यह फैसला सुनाया। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने मैसूर विश्वविद्यालय के रेशम उत्पादन विभाग में दो रीडरों की नियुक्ति को निरस्त कर दिया था।

विश्वविद्यालय की विशेष्ाज्ञों की समिति ने डॉ. बासवैया और डॉ. डी. मंजूनाथ का 1999 में उपयुक्त तरीके से विचार करने के बाद चयन किया था। लेकिन व्याख्याता एच एल रमेश की याचिका पर उच्च न्यायालय ने इस नियुक्ति को निरस्त कर दिया। फिर इन रीडरों ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। विश्वविद्यालय ने कहा कि चयन प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की गई और नियुक्तियां पद के लिए निर्घारित योग्यता के आधार पर ही हुईं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमारा यह विचार है कि पांच विशेष्ाज्ञों की समिति की सर्वसम्मति से की गई सिफारिशों के खिलाफ की गई अपील पर सुनवाई करना खंडपीठ के लिए न्यायोचित नहीं है।

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