पढ़ाई और जीवन में क्या अंतर है? स्कूल में आप को पाठ सिखाते हैं और फिर परीक्षा लेते हैं. जीवन में पहले परीक्षा होती है और फिर सबक सिखने को मिलता है. - टॉम बोडेट

Sunday, August 8, 2010

अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ने की प्रक्रिया मजाक -गौहाटी उच्च न्यायालय

अवैध बांग्लादेशियों को खदेड़ने की पूरी प्रक्रिया एक प्रहसन है। गौहाटी उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है। असम में खदेड़े गए बांग्लादेशियों के वापस प्रवेश करने को गंभीर मानते हुए उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि विदेशी न्यायाधिकरण की स्थापना का मकसद ही पूरा नहीं हो रहा है। न्यायाधीश बी के शर्मा की खण्डपीठ ने खदेड़े गए बांग्लादेशी नागरिक मोहमद अताउर रहमान की रिट याचिका पर सुनवाई के बाद कहा कि विदेशी न्यायाधिकरण समेत पूरी मशीनरी ही मजाक बन गई है और इससे असली उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है।

विदेशी नागरिकों की शिनाख्त और खदेड़ने के लिए स्थापित किए गए विदेशी न्यायाधिकरणों पर करोड़ों रूपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन इनका कोई लाभ नहीं हो रहा है। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कहा कि 20 नवम्बर 2008 को करीमगंज जिले के भारत-बांग्लादेश सीमा के घने जंगलों में पुलिस ने मुझे छोड़ दिया था। मुझे 14 नवम्बर को पकड़ा गया था, जिस तरह बांग्लादेशियों को खदेड़ने की पूरी प्रक्रिया अपनाई जाती है उस पर अदालत ने आश्चर्य व्यक्त किया है। इस मामले पर 19 मई 2010 को दिए गए आदेश के बाद राज्य व केन्द्र सरकार ने जो जवाब दिया है उस पर अदालत ने असंतोष जताया है।

अदालत ने अब आदेश दिया है कि दोनों 26 अगस्त को या इससे पहले अपने रूख पर हलफनाम पेश करे। अदालत ने कहा है कि अवैध बांग्लादेशियों की घुसपैठ को लेकर केन्द्र्र और राज्य असहाय है तो उसे हलफनामे में यह बात भी कहनी चाहिए। मालूम हो कि बांग्लादेश इन घुसपैठियों को वापस नहीं लेता है और असम पुलिस इन्हें पकड़कर सीमा के जंगलों में धकेल अपने कार्य की इतिश्री मान लेती है। खदेड़ा गया व्यक्ति वापस असम पहुंच जाता है।

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